नई दिल्लीः पॉक्सो एक्ट को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट के विवादित फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग भी आज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. आज कोर्ट ने राज्य सरकार और महिला आयोग की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया. लेकिन भारतीय स्त्री शक्ति नाम के एनजीओ की याचिका को सुनने से मना कर दिया.


चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने एनजीओ के वकील से कहा, "यह एक आपराधिक मामला है. इससे आपका सीधा संबंध नहीं है. आप जो भी कहना चाह रहे हैं, वह सारी बातें सुनवाई के दौरान देख ली जाएंगी. आपको हम बतौर पक्ष स्वीकार नहीं कर सकते." बेंच ने शुरू में राष्ट्रीय महिला आयोग को भी पक्ष बनाने पर असहमति जताई, लेकिन वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने दलील दी कि ऐसे मामलों में दखल देना आयोग की कानूनी अनिवार्यता है.


बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की सिंगल बेंच ने 12 साल की बच्ची को जबरन कमरे में बंद कर उसके वक्ष दबाने वाले एक व्यक्ति पर से पॉक्सो एक्ट की धारा हटा दी थी. बच्चों के यौन शोषण के मामलों में लगने वाले इस एक्ट को हटाते हुए हाई कोर्ट ने दलील दी थी कि बिना कपड़े उतारे वक्ष दबाना महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का मामला है, न कि यौन दुराचार का.


27 जनवरी को एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने यह मसला कोर्ट के सामने रख था. उन्होंने बताया था कि कानून की इस व्याख्या का देशव्यापी असर होगा. इससे नाबालिगों का यौन शोषण करने वालों को मदद मिलेगी. कोर्ट ने मामले पर तुरंत संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. माना जा रहा है कि कोर्ट नाबालिगों से यौन दुर्व्यवहार के मामलों में मुकदमा दर्ज करने को लेकर दिशानिर्देश बना सकता है.


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