MP MLA Monitoring Petition: सुप्रीम कोर्ट ने बेहतर प्रशासन के लिए सांसदों और विधायकों की चौबीसों घंटे डिजिटल निगरानी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका को शुक्रवार (1 मार्च) को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा, "निजता का अधिकार नाम की भी कोई चीज होती है."
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ से पूछा गया कि क्या कोर्ट सांसदों की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए उनके शरीर में कोई चिप लगा सकती है. सुनवाई की शुरुआत में चीफ जस्टिस ने दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता सुरिंदर नाथ कुंद्रा को आगाह किया कि उन्हें ऐसे मामले पर न्यायिक समय का दुरुपयोग करने के लिए पांच लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है.
'निर्वाचित सदस्यों की डिजिटल निगरानी नहीं कर सकते'
पीठ ने कहा, ‘‘यदि आप बहस करते हैं और हम आपसे सहमत नहीं होते हैं तो आपसे पांच लाख रुपये भू-राजस्व के रूप में वसूल किए जाएंगे. यह जनता का समय की बात है. यह हमारा अहंकार नहीं है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘क्या आपको एहसास है कि आप क्या बहस कर रहे हैं? आप सांसदों और विधायकों की चौबीसों घंटे निगरानी चाहते हैं. ऐसा केवल उस सजायाफ्ता अपराधी के लिए किया जाता है, जिसके न्याय से बचकर भागने की आशंका होती है. निजता का अधिकार नाम की कोई चीज होती है और हम संसद के सभी निर्वाचित सदस्यों की डिजिटल निगरानी नहीं कर सकते.’’
याचिकाकर्ता सुरिंदर नाथ कुंद्रा ने कहा कि सांसद और विधायक, जो नागरिकों के वेतनभोगी सेवक होते हैं, वे शासकों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आप सभी सांसदों पर एक समान आरोप नहीं लगा सकते.’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में व्यक्ति कानून नहीं बना सकते हैं और इन्हें केवल निर्वाचित सांसदों के माध्यम से लागू किया जाना है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को किया अगाह
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘तब लोग कहेंगे कि ठीक है हमें जजों की जरूरत नहीं है. हम सड़कों पर फैसला करेंगे और चोरी के अपराधी को मार डालेंगे. क्या हम चाहते हैं कि ऐसा हो? सांसदों और विधायकों की डिजिटल निगरानी का अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता."
चीफ जस्टिस की सदस्यती वाली पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता इस मामले को आगे बढ़ाता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा, लेकिन हम जुर्माना लगाने से बचते हुए आगाह करते हैं कि भविष्य में ऐसी कोई याचिका दायर नहीं की जानी चाहिए.’’
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