1 पेड़ की कीमत 75 लाख! SC ने कहा- ऐसे तो कंगाल हो जाएगी सरकार
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित एक कमिटी ने 356 पेड़ों का मूल्य 220 करोड़ रुपए आंका है. मामला सेतु भारतमाला परियोजना के तहत 5 रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण से जुड़ा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित एक कमिटी ने बताया है कि एक पेड़ साल भर में 75 हज़ार रुपए का ऑक्सीजन और खाद पैदा करता है. इस लिहाज से पुराने और मजबूत पेड़ों की कीमत 75 लाख या उससे ज़्यादा हो सकती है. कोर्ट ने कहा है कि वह कमिटी की रिपोर्ट और दूसरे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकारी परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने पर प्रोटोकॉल तैयार करेगा.
मामला पश्चिम बंगाल में सेतु भारतमाला परियोजना के तहत 5 रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण का है. इनके जरिए भारतीय सड़क नेटवर्क को बांग्लादेश और म्यांमार के सड़क नेटवर्क से जोड़ा जाना है. इससे पूर्वी एशिया के देशों के साथ व्यापारिक संबंध मज़बूत होंगे. पूर्वोत्तर भारत के आर्थिक विकास में भी तेज़ी आएगी. परियोजना के लिए 356 पेड़ काटे जाने हैं. एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स नाम की संस्था ने वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए इसका विरोध करते हुए याचिका दाखिल की है.
नेशनल हाईवे 112 को रेलवे क्रॉसिंग मुक्त करने के लिए बन रहे इन ओवरब्रिजों के निर्माण का विरोध करते हुए एनजीओ ने कहा है कि जो पेड़ परियोजना के लिए काटे जाएंगे, वह काफी पुराने और मजबूत पेड़ हैं. उन्हें नहीं काटा जाना चाहिए. सरकार को आर्थिक विकास के नाम पर पर्यावरण का नुकसान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने पुराने पेड़ों की कीमत का आकलन करने के लिए 5 पर्यावरणविदों की एक कमिटी बनाई थी. सोहम पांड्या, निशिकांत मुखर्जी, सुनीता नारायण, बिकाश कुमार माजी और निरंजिता मित्रा की इस कमिटी ने कोर्ट को बताया है कि एक पेड़ साल भर में जितना ऑक्सीजन देता है, उसकी कीमत 45 हज़ार रुपए होती है. पेड़ के चलते ज़मीन को जो पोषण मिलता है, जो कंपोस्ट खाद तैयार होती है तो उसकी सालाना उत्पादकता 75 हज़ार रुपए है. इस हिसाब से एक पुराने और मजबूत पेड़, जिसकी आयु 100 साल बाकी है, की कीमत कम से कम 75 लाख रुपए होती है.
कमिटी ने 356 पेड़ों का मूल्यांकन 220 करोड़ रुपए आंका है. यह भी कहा है कि अगर आगे चल के सड़क को चौड़ा करने की योजना बनी तो 3 हज़ार करोड़ रुपए के पेड़ काटने पड़ेंगे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कमिटी की तरफ से की गई मेहनत की सराहना की. लेकिन कोर्ट ने कहा, "अगर सरकारी परियोजनाओं के दौरान इस तरह से पेड़ों की कीमत कर उसे परियोजना की लागत में जोड़ने को कहा गया, तो कोई भी सरकार कंगाल हो जाएगी. इस मसले पर संतुलित तरीके से विचार कर एक प्रोटोकॉल बनाने की ज़रूरत है."
विशेषज्ञ कमिटी ने यह सुझाव भी दिया है कि पेड़ को काटने की बजाय उसे जड़ समेत दूसरी जगह स्थापित करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. किसी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने है पड़ें तो उसकी बजाय सिर्फ 5 पौधे लगाने की नीति गलत है. तने के ऊपरी हिस्से के आकार के आधार पर कटे पेड़ के बदले नए पौधे लगाए जाने चाहिए. यह संख्या 10 से लेकर 50 तक हो सकती है.
कोर्ट ने मामले की सुनवाई फिलहाल 2 हफ्ते टाल दी है. एनजीओ के वकील और सरकार से मिल कर सरकारी परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटे जाने पर एक प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए कहा है.