सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अक्टूबर, 2024) को एक शख्स की मौत की सजा को कम करके 20 साल जेल की सजा में तब्दील कर दिया. यह शख्स अपनी गर्भवती बेटी की हत्या का दोषी है. उसकी बेटी ने इंटरकास्ट मैरिज की थी.


जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने महाराष्ट्र के नासिक जिले में बंद एकनाथ किसान कुंभारकर की दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन उसकी मौत की सजा को खारिज कर दिया. अधिनस्थ अदालत की ओर से दर्ज किए गए दोषसिद्धि के आदेश जिसकी बंबई उच्च न्यायालय के छह अगस्त, 2019 के आदेश में पुष्टि की गई थी.


न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत अधिनस्थ अदालतों द्वारा दी गई मौत की सजा को बिना किसी छूट के 20 साल के कठोर कारावास में तब्दील किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कुंभारकर को तब तक छूट के लिए कोई अभ्यावेदन देने का अधिकार नहीं होगा, जब तक कि वह वास्तविक कठोर कारावास के 20 साल पूरे नहीं कर लेता.


दोषी की रिपोर्ट देखने के बाद पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि वर्तमान मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता है, जिसमें यह माना जा सकता है कि मृत्युदंड देना ही एकमात्र विकल्प है. हमारा विचार है कि वर्तमान मामला मध्य मार्ग की श्रेणी में आएगा, जैसा कि इस अदालत ने विभिन्न निर्णयों में माना है.'


अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुंभारकर ने 28 जून 2013 को अपनी गर्भवती बेटी प्रमिला की हत्या कर दी थी, क्योंकि उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध दूसरी जाति के व्यक्ति से शादी कर ली थी. कोर्ट ने कहा कि सबूतों से साफ है कि याचिकाकर्ता बेटी की हत्या के मकसद से उसे मां के घर घूमाने का बहाना करके बाहर ले गया. जब वह ऑटोरिक्शा से जा रहे थे तब उसने बीच रास्ते में सावरकर हॉस्पिटल के पास ऑटो रुकवाया और बहान से अपने साथ वालों को वॉचमैन को ढूंढने के लिए भेज दिया. जब तक वे लोग वापस लौटे, याचिकाकर्ता ने रस्सी से गला घोंटकर पीड़िता की हत्या कर दी.  कोर्ट ने कहा कि ये सबूत अपीलकर्ता के अपराध को स्थापित करते हैं और कोई ऐसी चीज यहां मौजूद नहीं है, जिसकी वजह से इन सबूतों पर विश्वास न किया जाए. 


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