Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक लोकसेवक (Public Servant) द्वारा किया गया भ्रष्टाचार राज्य और समाज के खिलाफ एक ‘अपराध’ है. जस्टिस एस ए नज़ीर और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की थी जिसमें पार्टियों के बीच समझौते के आधार पर ‘कैश फॉर जॉब स्कैम’ में एक आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह प्वाइंट आउट करने की जरूरत नहीं है कि एक लोकसेवक द्वारा भ्रष्टाचार राज्य और बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ एक अपराध है. कोर्ट आधिकारिक पद के दुरुपयोग और भ्रष्ट प्रथाओं को अपनाने से संबंधित मामलों से निपट नहीं सकता है. इसलिए हम मानते हैं कि आपराधिक शिकायत को खारिज करने में हाई कोर्ट पूरी तरह से गलत था."
हाईकोर्ट ने क्यों खारिज कर दी थी आपराधिक शिकायत
मामले में शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर आरोपी का समर्थन किया था और इस आधार पर मामले को खारिज करने की प्रार्थना की थी कि पीड़ितों का आरोपी के साथ केवल धन का विवाद था. इसे अदालत के बाहर सुलझा लिया गया था. उसने ये भी तर्क दिया था कि दो समूहों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की वजह से उसकी शिकायत ज्यादा गंभीर मुद्दे में परिवर्तित हो गई था. पीड़ित, जिन्होंने मूल रूप से रोजगार हासिल करने के लिए पैसे का भुगतान करने का दावा किया था, उन्होंने भी आरोपी के समर्थन में व्यक्तिगत हलफनामा दायर किया. वहीं जब खारिज करने की याचिका सुनवाई के लिए आई तो राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि घटना साल 2014 में हुई थी और उसी साल आरोपी और पीड़ितों के बीच समझौता हो गया था.हाईकोर्ट ने तमाम पेश की गई दलीलों पर ध्यान दिया और आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपराधिक शिकायत को किया बहाल
शीर्ष अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अदालतों को अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेलाम करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. वह इस तथ्य से पीछे नहीं हट सकती कि भ्रष्ट आचरणों को अपनाकर सरकारी/सार्वजनिक निगमों में पदों पर चुने गए और नियुक्त किए गए उम्मीदवारों को अंततः सार्वजनिक सेवा करने के लिए कहा जाता है.
पीठ ने आपराधिक शिकायत को बहाल करते हुए कहा,"यह कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों द्वारा प्रदान की जाने वाली पब्लिक सर्विस की क्वालिटी उनके द्वारा अपनाई गई भ्रष्ट प्रथाओं के उल्ट ही होगी. "इसलिए, जनता, जो इन सेवाओं के प्राप्तकर्ता हैं, वे भी शिकार बन जाते हैं, हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से, क्योंकि ऐसी नियुक्तियों के परिणाम नियुक्तियों द्वारा किए गए कार्य में देर-सबेर परिलक्षित होते हैं."
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