नई दिल्ली: केंद्र की कोविड वैक्सीनेशन नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने आज कड़े सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि 45 साल तक के लोगों के लिए वैक्सीन केंद्र ने अपनी तरफ से दी, पर 18 से 44 साल के लोगों का पूरा मामला राज्यों पर छोड़ दिया. केंद्र ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि राज्यों की आर्थिक स्थिति अलग-अलग है. राज्यों में बड़ी संख्या में मौजूद निरक्षर, गरीब और कमज़ोर लोगों की चिंता भी इस पॉलिसी में नहीं की गई है.


30 अप्रैल को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी पर कई सवाल उठाए थे. कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र खुद वैक्सीन खरीद कर राज्यों को उपलब्ध क्यों नहीं करवा रहा है? जिसके जवाब में केंद्र ने अपनी नीति को बहुत सोच समझकर बनाया गया बताया था. साथ ही, यह भी कहा था कि नीतिगत मामलों में कोर्ट को बहुत ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए. आज मामले की सुनवाई कर रही 3 जजों की बेंच ने सरकार की टीकाकरण नीति में कई खामियों की तरफ इशारा किया और कहा, "केंद्र यह न कहे कि उसे ही पता है कि क्या सही है. कोर्ट नीति नहीं बनाता. लेकिन किसी भी नीति की गलतियों को सुधारने के लिए हमारे हाथ बहुत मजबूत है."


'राज्यों को आपस में ही वैक्सिंग के लिए भिड़ने को छोड़ दिया'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट की बेंच ने कहा, "45 साल से अधिक आयु के लोगों के स्वास्थ्य को ज्यादा खतरा मानते हुए केंद्र ने वैक्सीन दी. क्या 18 से 44 की उम्र में ऐसे लोग नहीं हैं, जिन्हें कोरोना से अधिक खतरा हो?" कोर्ट ने आगे कहा, "राज्यों को आपस में ही वैक्सिंग के लिए भिड़ने को छोड़ दिया गया है. केंद्र ने इस बात तक पर पर भी विचार नहीं किया कि महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य और उत्तर-पूर्व के किसी राज्य की आर्थिक स्थिति में कितना अंतर है? देश के कई राज्यों का बजट तो बृहन्नमुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) से भी कम है.


सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "राज्यों में जो वैक्सीन खरीदा जा रहा है, उसका आधा हिस्सा निजी अस्पताल ले रहे हैं. वह 900-1000 रुपए की कीमत पर लोगों को टीका लगा रहे हैं. क्या केंद्र सरकार यह मानती है कि किसी राज्य में 18 से 44 साल के 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं कि मंहगी कीमत पर खरीद कर वैक्सीन लगवा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कोविन ऐप के माध्यम से टीकाकरण के लिए रजिस्ट्रेशन पर भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा, "आप डिजिटल इंडिया-डिजिटल इंडिया कहते रहिए. लेकिन आप जमीनी हकीकत से परिचित नहीं है. किसी ऐप पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना तो दूर की बात है, अगर आप एक कॉमन सेंटर बनाकर वहां ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की बात कहते हैं, तो यह भी बहुत ज्यादा व्यवहारिक नहीं है. झारखंड के किसी सुदूर गांव में रहने वाले गरीब मजदूर के लिए उस सेंटर तक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती होगा."


मामले में एमिकस क्यूरी बनाए गए वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने कहा ''बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें टीकाकरण में प्राथमिकता मिलनी चाहिए. जैसे शमशान में काम करने वाले लोग, शिक्षक, किसी असहाय बुजुर्ग की सेवा कर रहे लोग. लेकिन उन तक उन्हें प्राथमिकता नहीं मिल पा रही है. इसका कारण यही है कि राज्य वैक्सीन पाने के लिए ही संघर्ष में लगे हैं. केंद्र इस प्रक्रिया से पूरी तरह से अपने नियंत्रण को हटाकर बैठा है. ऐसे में जरूरतमंदों के लिए कोई स्पष्ट नीति ही नजर नहीं आ रही."


'लचीलेपन के साथ नीति बनाने की जरूरत है'
सुनवाई के अंत में कोर्ट ने कहा, "यह सही है कि बीमारी की स्थिति और वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर परिस्थितियां लगातार बदलती रहती है. ऐसे में लचीलेपन के साथ नीति बनाने की जरूरत है. हम चाहते हैं कि केंद्र अपनी पूरी नीति हमारे सामने रखे. आज इस मामले पर अधिक आदेश नहीं दिया जाएगा. हम केंद्र को अपनी वैक्सीनेशन नीति पेश करने के लिए 2 हफ्ते का समय दे रहे हैं. हम चाहते हैं कि सुनवाई के दौरान उठाए गए बिंदुओं का उसमें जवाब हो.”


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