New Parliament Inauguration: नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है. कोर्ट ने कहा है कि इस तरह का आदेश देना उसका काम नहीं. सुनवाई के दौरान जजों ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का कोई अधिकार इस मामले में अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा है.


तमिलनाडु के रहने वाले वकील सी आर जयासुकिन ने प्रधानमंत्री के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन करवाए जाने का विरोध किया था. लोकसभा सचिवालय की तरफ से इस कार्यक्रम को लेकर जारी निमंत्रण पत्र को असंवैधानिक बताते हुए उन्होंने दलील दी थी कि राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख हैं. इसलिए नए संसद भवन का उद्घाटन उन्हीं से करवाया जाना चाहिए.


'हर्जाना लगाते हुए खारिज क्यों नहीं करना चाहिए याचिका?'
सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच के जस्टिस जे के माहेश्वरी और पी एस नरसिम्हा की बेंच के सामने यह मामला लगा. जजों ने शुरू में ही पूछा कि इस तरह की याचिका को हर्जाना लगाते हुए खारिज क्यों नहीं करना चाहिए? इस पर वकील ने अपनी बात रखने की अनुमति मांगी. जजों ने उनसे कहा कि आप अपनी बात रखिए.


याचिकाकर्ता ने कहा कि राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख हैं. संविधान के अनुच्छेद 79 में संसद का जो गठन बताया गया है, उसके तीन हिस्से हैं - राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा. इस तरह राष्ट्रपति संसद का एक हिस्सा है जबकि प्रधानमंत्री सिर्फ संसद के सदस्य हैं. इस पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, "अनुच्छेद 79 सिर्फ एक व्यवस्था की व्याख्या करता है. इसमें कहीं भी इस बात की अनिवार्यता नहीं दी गई है कि कोई उद्घाटन भी राष्ट्रपति के हाथों ही करवाना जरूरी है."


'याचिका अनुच्छेद 32 के तहत कैसे दाखिल की गई'
जस्टिस जे के माहेश्वरी में इस बात पर आश्चर्य जताया कि इस तरह की याचिका अनुच्छेद 32 के तहत कैसे दाखिल की गई है? मामले में याचिकाकर्ता या किसी भी व्यक्ति का कौन सा अधिकार प्रभावित हो रहा है? वकील ने एक बार फिर कहा की अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति ही संसद का सत्र बुलाते हैं और 87 के तहत वह दोनों सदनों को संबोधित करते हैं.


आखिरकार जजों ने कहा, "हमने याचिकाकर्ता को काफी देर तक अपनी बात रखने की अनुमति दी वह यह साबित नहीं कर पा रहा है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट को क्यों दखल देना चाहिए? संविधान के जिन अनुच्छेदों का उल्लेख उन्होंने किया, उनसे कहीं भी यह साबित नहीं होता कि किसी इमारत का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए."


इसके बाद जजों ने याचिका खारिज करने का आदेश लिखवाना शुरू किया. तब याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए. कोर्ट में मौजूद सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि अगर याचिका वापस लेने की अनुमति दी गई तो याचिकाकर्ता इसे हाई कोर्ट में दाखिल कर देगा. इस पर जजों ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करना चाहता है. वकील ने इससे मना किया.  इसके बाद कोर्ट ने उसे याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी.


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