नई दिल्ली: सीबीआई आंतरिक विवाद पर आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने इस दौरान केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच रिपोर्ट सभी पक्षों को देने के लिए कहा और अगली सुनवाई मंगलवार (20 नवंबर) तक के लिए टाल दी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आलोक वर्मा के खिलाफ लगे कुछ आरोपों का सीवीसी की रिपोर्ट समर्थन नहीं करती है और कुछ मामलों में उसका कहना है कि और जांच की जरूरत है. कोर्ट ने अभी कुछ भी फैसला देने से इंकार कर दिया.


इससे पहले कोर्ट ने 26 अक्टूबर को सीवीसी को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर लगे आरोपों की जांच 2 हफ्ते में पूरी करने को कहा था. कोर्ट ने जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एके पटनायक को दी थी. अदालत ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और एनजीओ कॉमन कॉज की याचिकाओं पर सीबीआई और केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नागेश्वर राव (सीबीआई के अंतरिम निदेशक) के किसी भी नीतिगत फैसला लेने पर रोक लगा दिया था. शीर्ष अदालत ने नागेश्वर राव के द्वारा लिए गए सभी फैसलों को सीलबंद लिफाफे में अदालत के सामने पेश करने का भी आदेश दिया था.


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इसके बाद मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर तक के लिए टाल दी गई थी. 12 नवंबर को हुई सुनवाई में सीवीसी के द्वारा देर से रिपोर्ट पेश करने के कारण कोर्ट ने मामले की शुक्रवार 16 नवंबर तक के लिए टाल दी थी. 16 नवंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि आलोक वर्मा पर लगे कुछ आरोपों का सीवीसी की रिपोर्ट समर्थन नहीं करती है और कुछ पर जांच की जरूरत है. कोर्ट ने आज की सुनवाई में कुछ भी फैसला देने से इंकार कर दिया.


CBI विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई चार याचिका


इससे पहले सीबीआई आंतरिक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिका दाखिल की गई थी. पहली याचिका खुद आलोक वर्मा ने दायर की थी. उन्होंने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने को गैरकानूनी बताते हुए कोर्ट से मामले की सुनवाई की बात की थी. दूसरी याचिका एनजीओ कॉमन कॉज़ की है, जिसने राकेश अस्थाना पर लगे आरोपों की SIT जांच की मांग की है. तीसरी याचिका लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की है. खड़गे ने आलोक वर्मा के समर्थन में याचिका दाखिल की है. चौथी याचिका राकेश अस्थाना की है. उन्होंने खुद को बहाल करने और आलोक वर्मा को पद से हटाने की मांग की है.


स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर


15 अक्टूबर को राकेश अस्थाना के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज किया. 1984 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी अस्थाना पर एक कारोबारी से दो करोड़ रुपये का रिश्वत लेने का आरोप है, जो मांस कारोबारी मोइन कुरैशी के मामले के तहत जांच के दायरे में थे. यह रकम उनको जांच को प्रभावित करने के लिए दिया गया था. मामला अस्थाना की अगुवाई में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही थी.


सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ले गए मामले को सुप्रीम कोर्ट


इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आलोक वर्मा की याचिका पर शुरू हुई थी. उन्होंने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उन्होंने नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बनाए जाने पर भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को 24 अक्टूबर की रात को केंद्र सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया था. अस्थाना ने भी केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.


दो करोड़ रुपए रिश्वत का आरोप


सीबीआई ने जो FIR स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर दर्ज किया था, उसमें उनपर मशहूर मीट कारोबारी मोईन कुरैशी के मामले में सतीश साना नाम के एक शख्स से दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप था. वहीं इससे पहले सतीश सना ने आलोक वर्मा पर रिश्वत के आरोप लगाए थे. इन रिश्वत के आरोपों के बाद सीबीआई में खुल्लम-खुल्ला गतिरोध शुरू हुआ. जिसके बाद निदेशक अलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को 23 अक्टूबर को छुट्टी पर भेज दिया गया.


इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब अस्थाना ने 24 अगस्त को कैबिनेट सचिव को एक पत्र लिखकर आलोक वर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के 10 मामले गिनाए थे. इसी पत्र में यह भी आरोप लगाया गया था कि साना ने इस मामले में क्लीनचिट पाने के लिए सीबीआई प्रमुख को दो करोड़ रुपये दिये.


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