बिहार के शराबबंदी कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 18 अप्रैल के लिए टाल दी है. बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कोर्ट को बताया कि 1 अप्रैल को राज्य सरकार ने कानून में कई बदलाव किए हैं. कोर्ट ने संशोधित कानून रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति देते हुए सुनवाई टाल दी.


15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद (संशोधन) अधिनियम (The Bihar Prohibition and Excise Act, 2016) को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को पटना हाई कोर्ट से अपने पास ट्रांसफर कर लिया था. जस्टिस ए एम खानविलकर और सी टी रविकुमार की बेंच याचिकाकर्ता 'इंटरनेशनल स्पिरिट एंड वाइंस एसोसिएशन' की याचिका को सुनते हुए यह माना था कि यह मसला सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित है. इसी आधार पर बेंच ने यह आदेश दिया था कि सभी केस पटना हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर दिए जाएं.


आज बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अभी तक सभी रिकॉर्ड पटना हाई कोर्ट से यहां नहीं पहुंचे हैं. बिहार के वकील ने यह भी बताया कि 1 अप्रैल को राज्य सरकार ने कानून के कई प्रावधानों को बदला है. उन्होंने बदले हुए प्रावधानों पर हलफनामा दाखिल करने की अनुमति मांगी. जजों ने इसे स्वीकार करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी.


इस बेंच के अलावा सुप्रीम कोर्ट की 2 और बेंच बिहार के मद्यनिषेध कानून पर सवाल उठा चुकी हैं. 11 जनवरी को चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने शराबबंदी कानून के उल्लंघन के 40 आरोपियों की जमानत के खिलाफ राज्य सरकार की अपील ठुकरा दी थी. 


25 फरवरी को जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने इस कानून के मुकदमों से बिहार में अदालतों पर बढ़ते बोझ पर चिंता जताई थी. जजों ने पूछा था कि क्या इस कानून को लागू करते समय बिहार सरकार ने कोई अध्ययन किया? क्या इस बात की समीक्षा हुई कि राज्य का न्यायिक ढांचा इसके लिए तैयार है या नहीं?


ये भी पढ़ें


जाकिर नाइक का फैन था गोरखनाथ मंदिर पर हमले का आरोपी, देखता था ISI के वीडियो, कनेक्शन खंगालने मुंबई पहुंची ATS


Gorakhpur Temple Attack: गोरखनाथ मंदिर के हमलावर अहमद मुर्तजा से यूपी एटीएस की ताबड़तोड़ पूछताछ, दागे ये 14 सवाल