Internal Complaints Committee: यौन उत्पीड़न की शिकायतों को सुनने के लिए राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों में भी आंतरिक शिकायत समिति बनाने की मांग सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मना कर दिया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पहले चुनाव आयोग के पास जाने की सलाह दी है. कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग के फैसले से अगर याचिकाकर्ता संतुष्ट न हो तो वह दोबारा सुप्रीम कोर्ट आ सकता है.
याचिकाकर्ता योगमाया जी. ने प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हरासमेंट ऐट वर्कप्लेस (POSH) एक्ट के तहत हर राजनीतिक पार्टी के कार्यालय में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की मांग की थी. उनका कहना था कि अधिकतर राजनीतिक दलों ने इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं बनाई है. जिन्होंने ऐसी समिति बनाई भी है उसे अधिकार नहीं दिए गए हैं.
क्या है POSH?
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को संक्षेप में POSH एक्ट कहा जाता है. इस कानून का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के लिए उनके कार्यालय में सुरक्षित माहौल बनाना है. इस कानून में किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न को लेकर महिला कर्मचारियों की शिकायत सुनने के लिए हर दफ्तर में इंटरनल कम्प्लेंट कमिटी बनाने का प्रावधान है. इस कमिटी को जांच और कार्रवाई को लेकर व्यापक अधिकार दिए गए हैं. इसके अलावा हर जिले में प्रशासन की भी भूमिका ऐसे मामलों को लेकर तय की गई है. इसके तहत जिन छोटे दफ्तरों में ICC न हो, वहां काम करने वाली महिला जिला प्रशासन की तरफ से बनाई गई LCC (लोकल कम्प्लेंट कमिटी) को शिकायत दे सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
याचिकाकर्ता की तरफ से वकील शोभा गुप्ता जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने पेश हुईं. बेंच ने सवाल किया कि जहां ICC का गठन न हुआ हो, वहां के कर्मचारी कहां शिकायत करते हैं. वकील ने जवाब दिया कि वह LCC के पास जा सकते हैं. बेंच ने अगला सवाल किया कि क्या राजनीतिक दलों के दफ्तर में काम करने वाले लोग कानूनन कर्मचारी का दर्जा रखते हैं? जजों ने खुद ही इसका जवाब देते हुए कहा कि केरल हाई कोर्ट एक मामले में कह चुका है कि अपने दफ्तर में काम करने वाले लोगों से राजनीतिक पार्टी का संबंध नियोक्ता और कर्मचारी का नहीं है. अंत में बेंच ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग करता है. याचिका में आयोग को पक्ष नहीं बनाया गया है. याचिकाकर्ता को पहले आयोग के पास जाना चाहिए.
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