'3 हफ्ते से बॉडी मोर्चरी में है, अंतिम संस्कार के लिए ऐसी जिद...', पिता को अपने गांव में ही दफनाने की बेटे की इच्छा पर क्या है SC का फैसला?
दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया, लेकिन इसे तीन जजों की बेंच के पास भेजने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने गौर किया कि शव तीन हफ्तों से मोर्चरी में है इसलिए जल्दी अंतिम संस्कार करने के लिए कहा गया.

अपने गांव में ही पिता को दफनाने की मांग कर रहे एक बेटे को इसकी अनुमति नहीं मिल पाई है. छत्तीसगढ़ के जिस परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, वह ईसाई है. गांव के लोग यह कहते हुए इसका विरोध कर रहे थे कि गांव का कब्रिस्तान हिंदू आदिवासियों का है. सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने वैसे तो इस मसले पर बंटा हुआ फैसला दिया, लेकिन 3 हफ्ते से शव के मोर्चरी में पड़े होने को देखते हुए तुरंत दूसरे गांव के ईसाई कब्रिस्तान में दफन का आदेश दे दिया.
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की दरभा तहसील के छिंदवाडा गांव के सुभाष बघेल की 7 जनवरी को मौत हो गई थी. दफनाने को लेकर विवाद के चलते उनका शव अभी भी हॉस्पिटल के मुर्दा घर में है. दरअसल, सुभाष बघेल ईसाई पास्टर (पादरी) थे. उनका पूरा परिवार भी ईसाई है. उनके बेटे रमेश बघेल कहना है कि उनके सभी पूर्वज गांव में ही दफन हुए हैं, इसलिए वह अपने पिता को वहीं दफन करेंगे. गांव के हिंदू आदिवासी इसका कड़ा विरोध कर रहे थे. उनका कहना था कि कब्रिस्तान आदिवासी हिंदुओं का है. याचिकाकर्ता आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए इस तरह की मांग कर रहा है.
मामले में छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि व्यक्तिगत अधिकार के मुकाबले सामुदायिक अधिकार को महत्व दिया जाना चाहिए. प्रशासन ने छिंदवाडा समेत 4 गांवों के ईसाइयों के लिए अलग कब्रिस्तान तय कर रखा है, लेकिन याचिकाकर्ता गांव में ही पिता को दफन करने की बात कर रहा है.
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस मसले पर सोमवार, 27 जनवरी को अलग-अलग फैसला दिया. जस्टिस नागरत्ना ने गांव के कब्रिस्तान की बजाय गांव में ही याचिकाकर्ता की निजी जमीन में दफन की बात कही, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने गांव से 20 किलोमीटर दूर कारकवाल में ईसाइयों के लिए तय कब्रिस्तान जाने को उचित कहा. जस्टिस नागरत्ना ने गरिमापूर्ण जीवन और समानता को अपने फैसले का आधार बनाया. वहीं, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि कोई भी मौलिक अधिकार संपूर्ण नहीं है. उसके अपवाद होते हैं. कोई भी यह जिद नहीं कर सकता कि वह अपनी तरफ से तय जगह पर ही अंतिम संस्कार करेगा.
2 जजों की अलग राय के बावजूद उन्होंने मामले को 3 जजों की बेंच में नहीं भेजा. शव के 3 सप्ताह से मोर्चरी में पड़े होने के चलते जजों ने अंतिम संस्कार में और विलंब को गलत माना. कोर्ट ने आदेश दिया है कि छत्तीसगढ़ सरकार जल्द से जल्द पूरी सुरक्षा के साथ कारकवाल के ईसाई कब्रिस्तान में पादरी के शव को दफन करने की व्यवस्था करे.
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