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'उम्रभर की जेल से फांसी बेहतर', इस बार कौन सी दलील लेकर पहुंचा पत्नी का हत्यारा जो सुप्रीम कोर्ट ने सुनते ही रिजेक्ट कर दी याचिका

याचिकाकर्ता स्वामी श्रद्धानंद ने जुलाई 2008 के फैसले की समीक्षा का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था. याचिका में कहा गया कि फैसले के एक हिस्से में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (23 अक्टूबर, 2024) को पत्नी की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसमें याचिकाकर्ता ने फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था. 11 सितंबर को पिछली सुनवाई में स्वामी श्रद्धानंद के वकील ने कहा था कि आज की तारीख में आजीवन कारावास से फांसी ज्यादा बेहतर हो सकती है. इस पर कोर्ट ने उनसे पूछा था कि क्या आपके मुवक्किल चाहते हैं कि उनकी सजा को मृत्युदंड में बदल दिया जाए और क्या आपने उनसे इस बारे में बात की है. वकील ने बताया कि उनसे बात नहीं की है. तब कोर्ट ने कहा कि दोषी को सजा चुनने का अधिकार नहीं है.  

जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस पी.के. मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने स्वामी श्रद्धानंद के वकील की दलीलें सुनीं. वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को जीवन भर जेल से रिहा करने से इनकार वाले फैसले के एक हिस्से ने संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है.

कोर्ट ने कहा, 'आप दलील दे सकते हैं कि तथ्यों के आधार पर यह उचित नहीं है, लेकिन एक सजा के रूप में इसे लागू किया जा सकता है, जिसे अब पांच जजों ने बरकरार रखा है.' स्वामी श्रद्धानंद उर्फ ​​मुरली मनोहर मिश्रा ने कोर्ट से जुलाई 2008 के फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया था. याचिकाकर्ता की पत्नी मैसूर रियासत के पूर्व दीवान की पोती थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान पीठ ने कहा है कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के तहत और राज्यपाल को अनुच्छेद 161 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है, भले ही अदालत ने मृत्युदंड के विकल्प के रूप में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया हो. संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में क्रमश: राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान देने तथा कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, माफ करने या कम करने की शक्ति का उल्लेख है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे कर्नाटक राज्य और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने सूचित किया है कि श्रद्धानंद ने पहले ही राष्ट्रपति को एक अभ्यावेदन दे दिया है. बेंच ने कहा, 'इस मामले को देखते हुए, हमें नहीं लगता कि वर्तमान कार्यवाही में किसी भी तरह का हस्तक्षेप उचित है.' इससे पहले, 11 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जेल से रिहाई के अनुरोध वाली श्रद्धानंद की एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था.

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