नई दिल्लीः टेलीकॉम कंपनियों की तरफ से 1.5 लाख करोड़ रुपए के एजीआर भुगतान के लिए दिए गए प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार से विचार कर जवाब देने को कहा है. अपनी आर्थिक स्थिति खस्ता बता रही कंपनियों से कोर्ट ने पिछले 10 साल का हिसाब किताब भी देने को कहा है.
क्या है मामला?
पिछले साल 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर की सरकार की परिभाषा को सही करार दिया था. कंपनियों का कहना था कि एजीआर के तहत सिर्फ लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम चार्ज आते हैं. लेकिन सरकार इसमें रेंट, डिविडेंड, संपत्ति की बिक्री से लाभ जैसी चीजों को भी शामिल बता रही थी.
कोर्ट की तरफ से सरकार की बात को सही करार देने से टेलीकॉम कंपनियों पर 1.5 लाख करोड़ रुपए की देनदारी आ गई थी. एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया, आरकॉम समेत सभी कंपनियों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की. इसे भी कोर्ट खारिज कर चुका है.
कंपनियों को मोहलत देने का अनुरोध
पिछले हफ्ते सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अगर इतनी बड़ी धनराशि का भुगतान मोबाइल कंपनियों को एक साथ करना पड़ा तो टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति बहुत बुरी हो जाएगी. इसलिए कंपनियों को किस्तों में भुगतान करने की अनुमति मिलनी चाहिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट में कंपनियों से यह पूछा था कि वह किस तरह से और कितने समय में अपने ऊपर बकाया एजीआर का भुगतान कर सकती हैं? कोर्ट ने कंपनियों से यह भी बताने के लिए कहा था कि वह भुगतान सुनिश्चित करने की गारंटी के तौर पर क्या कोर्ट में बैंक सिक्योरिटी या कोई और चीज जमा करा सकती हैं?
सार्वजनिक क्षेत्र को मिली राहत
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी एजीआर बकाया का नोटिस भेजने के लिए खरी-खोटी सुनाई थी. सरकार ने विशेष उद्देश्य से टेलीकॉम बैंडविथ का इस्तेमाल करने वाले गेल, आयल इंडिया, पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन, गुजरात नर्मदा फर्टिलाइजर्स, दिल्ली मेट्रो, रेल टेल जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर करीब 4 लाख करोड़ रुपए की देनदारी तय की थी. इसे कोर्ट ने गलत कहा था.
आज सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी कि उसने गैर टेलीकॉम पीएसयू कंपनियों से 3.7 लाख करोड़ रुपए का एजीआर वसूलने का आदेश वापस ले लिया है. इस तरह, पीएसयू से लिए जाने वाले एजीआर का लगभग 96 फीसदी माफ कर दिया गया है.
निजी टेलीकॉम कंपनियों की दलील
केंद्र की तरफ से पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि उन्हें सरकार को निजी टेलीकॉम कंपनियों की तरफ से दिए गए प्रस्ताव का अध्ययन करने का मौका मिलना चाहिए. इस पर 3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “यह मौका हम आपको जरूर देंगे. पहले कंपनियों के प्रस्ताव को देख लेते हैं.''
इसके बाद एयरटेल वोडाफोन जैसी कंपनियों के वकीलों ने पक्ष रखना शुरू कर दिया. एयरटेल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनकी कंपनी ने 21 हज़ार करोड़ रुपए की बकाया धनराशि में से 18 हज़ार करोड रुपए चुका दिए हैं. बाकी रकम चुकाने के लिए समय मिलना चाहिए.
वोडाफोन-आइडिया के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, “हमारी कंपनी ने 7 हज़ार करोड रुपए का भुगतान किया है. बाकी रकम चुकाने के लिए हमें समय की जरूरत है. फिलहाल कंपनी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह बैंक सिक्योरिटी दे सके. सरकार के पास पहले से जमा 15 हज़ार करोड़ रुपए की बैंक सिक्योरिटी को ही स्वीकार कर लिया जाए."
इस पर जजों ने वोडाफोन के वकील से कहा, “आप अपनी कंपनी की वित्तीय स्थिति खराब बता रहे हैं. लेकिन आप की संपत्तियों की कुल कीमत क्या है? आपके पिछले 10 साल का फाइनेंसियल स्टेटमेंट क्या है? इन सब बातों की आप हमें जानकारी दीजिए." कोर्ट ने यह भी कहा है की लॉकडाउन की इस अवधि में टेलीकॉम कंपनियों ने काफी मुनाफा कमाया है. फिलहाल वह कुछ रकम तो सरकार के पास जमा कराएं. सरकार को पैसों की बहुत जरूरत है.
‘प्लेयर नहीं, रेफरी हैं हम’
सुनवाई में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब वोडाफोन के वकील मुकुल रोहतगी ने फिलहाल कोई रकम देने में असमर्थता जताई. इस पर कोर्ट ने कहा कि अकेले उनकी कंपनी को रियायत नहीं दी जा सकती. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “आप अकेले प्लेयर नहीं है." इस पर रोहतगी ने कहा, “सबसे बड़ा प्लेयर तो सुप्रीम कोर्ट है." जज ने अपनी भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा, “हम प्लेयर नहीं है, रेफरी हैं."
एक महीना टली सुनवाई
सुनवाई के अंत में कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह कंपनियों की तरफ से दिए गए प्रस्ताव पर अपना जवाब दाखिल करे. कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों से कहा कि वह अपने पिछले 10 साल का फाइनेंशियल स्टेटमेंट कोर्ट में जमा कराएं. इस मामले में जुलाई के तीसरे हफ्ते में सुनवाई होगी. तब कोर्ट यह तय करेगा कि एजीआऱ भुगतान को लेकर मोबाइल कंपनियों को किस तरह की रियायत दी जा सकती है.
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