सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 नवंबर, 2024) को कहा कि एयरपोर्ट पर कर्मचारियों को दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए और इसके लिये उन्हें नियमित अंतराल पर आवश्यक ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता आरुषि सिंह की याचिका पर की है, जो व्हीलचेयर का इस्तेमाल करती हैं और उन्हें एक यात्रा के दौरान एयरपोर्ट पर जांच के लिए बार-बार खड़ा किया गया.
उन्होंने बताया कि एयरपोर्ट अधिकारियों और स्टाफ में से किसी ने भी इस दौरान उनकी मदद नहीं की. यह देखते हुए भी कि वह खड़ी नहीं हो पा रही हैं, फिर भी अधिकारी उनसे खड़े होने के लिए बोल रहे थे. आरुषि सिंह का 75 फीसदी शरीर काम नहीं करता है. आरुषि सिंह गुरुग्राम की रहने वाली हैं, जिन्होंने कहा था कि कोलकाता हवाईअड्डे पर सुरक्षा जांच के दौरान केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक जवान ने उन्हें तीन बार खड़े होने के लिए कहा था.
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि वह व्हीलचेयर का इस्तेमाल करती हैं और कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल हवाईअड्डे पर सुरक्षा जांच के लिए उन्हें तीन बार खड़े होने के लिए कहा गया था. न कोई मदद की गई और न ही वहां कोई महिला मौजूद थी. उन्होंन कहा कि एयरपोर्ट पर इस तरह के मामलों में मदद के लिए सिर्फ पुरुष ही मौजूद होते हैं.
याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्हें काम के सिलसिले में 3 से 4 महीने में दिल्ली से कोलकाता जाना होता है. इस फ्लाइट के लिए वह जब एयरपोर्ट पर पहुंचीं तो 20 मिनट तक कोई मदद नहीं दी गई और अपने व्हीलचेयर से एयरपोर्ट के व्हीलचेयर पर शिफ्ट करने के लिए भी कोई नहीं था.
आरुषि सिंह की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि हम हवाई अड्डों पर कर्मचारियों को दिव्यांग यात्रियों के प्रति अधिक दयालु होने के लिए संवेदनशील बनाने की आवश्यकता पर अधिक जोर देते हुए रिट याचिका का निपटारा करते हैं. कोर्ट ने कहा कि एयरपोर्ट के स्टाफ को नियमित अंतराल पर आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और इसमें हवाई अड्डों पर यात्रियों को होने वाली समस्याओं में सहायता प्रदान करना शामिल होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पहले ही एक विस्तृत आदेश पारित किया जा चुका है, जिसमें केंद्र को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच में सुधार के लिए तीन महीने के भीतर अनिवार्य सुगम्यता मानकों को लागू करने का निर्देश दिया गया था.
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