नई दिल्ली: नोएडा में बनी 40 मंजिल की 2 इमारतों को सुप्रीम कोर्ट ने गिराने का आदेश दिया है. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पहली बार इस तरह के बड़े निर्माण को गिराने का आदेश जारी हुआ है. कोर्ट ने आदेश देते समय यह कहा है कि बिल्डरों और अधिकारियों के 'अपवित्र गठजोड़' ने लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है. दोनों अवैध निर्माण सुपरटेक बिल्डर के हैं. कोर्ट ने यह आदेश भी दिया है कि निर्माण गिराने का पूरा खर्च बिल्डर खुद उठाएगा. फ्लैट खरीदारों को उनके पैसे ब्याज समेत वापस लौटाए जाएंगे.
क्या है मामला?
सुपरटेक बिल्डर ने नोएडा के सेक्टर-93 में एमरल्ड कोर्ट नाम के बिल्डिंग परिसर में 40 और 39 मंजिल के 2 नए टावर खड़े कर दिए. 950 फ्लैट वाले दोनों टावर बनाते समय वहां पहले से रह रहे लोगों की सहमति नहीं ली गई. नक्शे के हिसाब से यह निर्माण सोसाइटी के खुले क्षेत्र में उस जगह किया गया, जहां से पार्क में जाने का रास्ता था. इस विशाल निर्माण से इमारतों के बीच की दूरी बहुत कम हो गई. पहले से रह रहे लोगों को रोशनी और हवा पाने में भी समस्या होने लगी.
सोसाइटी के आरडब्ल्यूए ने नोएडा ऑथोरिटी से निर्माण के बारे में जानकारी मांगी, तो उन्हें मना कर दिया गया. एमरल्ड कोर्ट निवासी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे. हाईकोर्ट ने अप्रैल 2014 में दोनों टावरों को अवैध करार दिया. उन्हें गिराने का आदेश दे दिया. हाईकोर्ट ने कहा था कि एपेक्स और सियान नाम के इन टावरों का निर्माण नियमों का उल्लंघन कर किया गया है. इसी फैसले के खिलाफ सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आज सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि यह निर्माण अवैध हैं. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच ने कहा कि 2009 और 2012 में दोनों टावरों के निर्माण के लिए नोएडा ऑथोरिटी की तरफ से दी गई अनुमति नियम विरुद्ध थी. दोनों टावर को बनाते समय पहले से मौजूद इमारतों से दूरी का ख्याल नहीं रखा गया. अग्नि सुरक्षा नियमों का भी उल्लंघन हुआ.
बाग की तरफ जाने वाले रास्ते पर नई इमारत बनाने से पहले वहां के 15 टावर में रह रहे लोगों से सहमति भी नहीं ली गई. पैसों के लालच में एमरल्ड कोर्ट में फ्लैट की संख्या 650 से बढ़ाकर 1500 कर दी गई. इन बातों को दर्ज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2 टावर गिराने के हाईकोर्ट के आदेश में दखल से मना कर दिया. कोर्ट ने इस अवैध निर्माण की अनुमति देने वाले नोएडा ऑथोरिटी के अधिकारियों पर नियमों के मुताबिक मुकदमा चलाने के हाई कोर्ट के आदेश को भी बरकरार रखा है.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि :-
- दोनों टावर को 3 महीने में गिराया जाए
- इस काम का पूरा खर्च सुपरटेक उठाए
- CBRI या किसी अन्य एक्सपर्ट एजेंसी की निगरानी में निर्माण गिराया जाए
- फ्लैट खरीदारों को 2 महीने में पैसे वापस दिए जाएं. 12 फीसदी ब्याज मिले
- इतने साल तक मुकदमा लड़ने के लिए एमरल्ड कोर्ट आरडब्ल्यूए के भी खर्च की भरपाई की जाए. बिल्डर उन्हें 1 महीने में 2 करोड़ रुपए दे.
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