Supreme Court News: महाराष्ट्र में बदले जाएंगे औरंगाबाद-उस्मानाबाद के नाम, SC में खारिज हुई सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका
Aurangabad-Osmanabad Name Change: महाराष्ट्र सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव रखने का फैसला किया है.
Aurangabad-Osmanabad Cities Name Change: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले को हरी झंडी दी, जिसमें राज्य के दो शहरों का नाम बदलने का फैसला किया गया था. महाराष्ट्र सरकार के जरिए राज्य के औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव रखने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. देश की शीर्ष अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसने राज्य सरकार के फैसले में किसी तरह की वैधानिक चुनौती नहीं देखी और उसे सही ठहराया. इसके बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आएगा. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ और अदालत ने इस याचिका को खारिज कर महाराष्ट्र सरकार के फैसले को हरी झंडी दिखा दी.
फैसले की न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाम बदलना सरकार का अधिकार होता है. इसकी न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं होती है. हाईकोर्ट ने आपकी बात सुनकर ही विस्तृत आदेश दिया है. हम उसमें दखल नहीं देंगे. इससे पहले 8 मई को हाईकोर्ट ने औरंगाबाद का नाम बदल कर छत्रपति संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था. कोर्ट ने कहा था कि फैसला कानूनी रूप से सही है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर मोहर लगाई है.
कैसे शुरू हुआ नाम बदलने को लेकर विवाद?
दरअसल, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने 29 जून, 2021 को कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद दोनों शहरों का नाम बदलने का फैसला किया. औरंगाबाद शहर और राजस्व मंडल का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया, जबकि उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव किया गया. फिर 16 जुलाई, 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली अगली सरकार ने एमवीए सरकार के फैसले को बरकरार रखा.
इसके बाद हाईकोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाएं की गईं. इसमें कहा गया कि सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलने का फैसला 2001 में ही वापस ले लिया था. उद्धव सरकार ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए नाम बदला था. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों की पूरी तरह अवहेलना है. कहा गया कि फैसले से दो धार्मिक समूहों के बीच दरार पैदा हो सकती है और इस तरह ये फैसला भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के बिल्कुल उलट है.
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