नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सभी 19 पुनर्विचार याचिकाएं खारिज हो गई हैं. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. पांच जजों ने विचार के बाद यह पाया है कि याचिकाएं खुली अदालत में सुनवाई के लायक नहीं हैं. 10 याचिकाएं मूल पक्षकारों ने दाखिल की थी. 9 नए लोगों की याचिका थी.


मूल पक्षकारों की याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने कोई नई बात नहीं पाई. वहीं नए लोगों को इजाज़त ही नहीं दी. कोर्ट ने कहा कि जो लोग पहले से इस केस में नहीं जुड़े थे उनकी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हो सकती. इस मामले पर आज बंद कमरे में करीब 50 मिनट तक सुनवाई चली.


पुनर्विचार याचिकाओं में क्या मांग की थी?


मुस्लिम पक्ष की तरफ से दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं में कहा गया है-
* 9 नवंबर को आया फैसला 1992 में मस्जिद ढहाए जाने को मंजूरी देने जैसा.
* 1949 में अवैध रूप से जिस मूर्ति को रखा गया उसी के पक्ष में फैसला सुनाया गया.
* अवैध हरकत करने वालों को ज़मीन दी गई.
* हिंदुओं का कभी वहां पूरा कब्ज़ा नहीं था.
* मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने का फैसला पूरा इंसाफ नहीं कहा जा सकता.
* सुप्रीम कोर्ट 9 नवंबर के फैसले पर रोक लगाए. मामले पर दोबारा विचार करे.


अयोध्या विवाद में क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?


9 नवंबर को दिए ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दी थी. कोर्ट ने मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाने के लिए कहा था. 5 जजों का यह एकमत फैसला उपलब्ध तथ्यों के हिसाब से विवादित ज़मीन पर मुसलमानों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत हिंदू दावे के चलते दिया गया था.


फिर भी कोर्ट ने माना था कि 1857 से लेकर 1949 तक मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ी. 1949 इमारत में मूर्ति रख कर मुसलमानों को जबरन वहां से भगाया गया. 1992 मस्ज़िद को तोड़ दिया गया. इसलिए, कोर्ट ने पूरा इंसाफ करने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी वैकल्पिक जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.


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