नई दिल्ली: अयोध्या फैसले पर दाखिल 19 पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दी हैं. 5 जजों ने करीब 50 मिनट तक इन अर्ज़ियों को देख कर यह माना कि मामले में दोबारा सुनवाई की कोई ज़रूरत नहीं है. यानी 9 नवंबर को आया फैसला ही लागू रहेगा.
क्या था फैसला
9 नवंबर को दिए ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दी थी. कोर्ट ने मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाने के लिए कहा था. 5 जजों का यह एकमत फैसला उपलब्ध तथ्यों के हिसाब से विवादित ज़मीन पर मुसलमानों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत हिंदू दावे के चलते दिया गया था. फिर भी कोर्ट ने माना था कि 1857 से लेकर 1949 तक मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ी. 1949 इमारत में मूर्ति रख कर मुसलमानों को जबरन वहां से भगाया गया. 1992 मस्ज़िद को तोड़ दिया गया. इसलिए, कोर्ट ने पूरा इंसाफ करने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी वैकल्पिक जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.
कुल 19 पुनर्विचार याचिकाएं
9 नवंबर को अयोध्या मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कुल 19 पुनर्विचार याचिकाएं विचार के लिए जजों के सामने लगी थीं. 10 याचिकाएं पक्षकारों की थीं. जबकि, 9 ऐसे लोगों या संगठनों की जो मुख्य मामले में पक्ष नहीं थे.
10 पक्षकारों की याचिका में मेरिट नहीं
पुनर्विचार याचिकाओं के लिए तय प्रक्रिया के तहत आज जजों ने ‘इन चैंबर’ यानी बंद कमरे में जिन याचिकाओं को देखा उनमें 10 मामले के पक्षकारों की थीं. मुस्लिम पक्ष की तरफ से 6 याचिकाएं मो. उमर, मिसबाहुद्दीन, मौलाना हसबुल्ला, महफूज़ुर्रह्मान, हाजी महबूब और असद अहमद ने दायर की थीं. इन छह याचिकाकर्ताओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन हासिल था. एक याचिका जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े मौलाना असद रशीदी की थी. इन याचिकाओं में पूरी विवादित ज़मीन रामलला को दिए जाने का विरोध किया गया था.
हिंदू पक्ष की तरफ से हिंदू महासभा ने भी एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में अयोध्या में मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन दिए जाने का विरोध किया गया है. निर्मोही अखाड़ा ने याचिका दाखिल कर मंदिर से जुड़े ट्रस्ट में अपनी भूमिका पर स्पष्टता मांगी थी. इसके अलावा शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित इमारत पर पहले सुन्नियों के नियंत्रण होने के फैसले को बदलने की मांग की है. इन सभी याचिकाओं के बारे में जजों ने दर्ज किया है कि उनमें मेरिट नहीं है. यानी कोई ऐसी बात नहीं कही गई है, जिसके चलते दोबारा सुनवाई की ज़रूरत हो.
नई याचिकाओं को मंजूरी नहीं
पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अय्यूब, केरल के राजनीतिक दल SDPI के साथ ही वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए 40 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी याचिका दाखिल कर पूरी विवादित ज़मीन रामलला को दिए जाने का विरोध किया था. इसके अलावा 6 और नई पुनर्विचार याचिकाएं जजों के सामने सूचीबद्ध थीं. जजों ने कहा है कि फैसला आ जाने के बाद अब किसी नए पक्ष की याचिका मंज़ूर नहीं की जा सकती.
सुन्नी वक्फ बोर्ड को फैसला मंज़ूर
गौरतलब है कि मामले का मुख्य मुस्लिम पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड पहले ही फैसले को स्वीकार करने की बात कह चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही 5 एकड़ ज़मीन देने को कहा था. मामले के पक्षकार इकबाल अंसारी भी कह चुके थे कि उन्हें कोर्ट का फैसला मंज़ूर है. वह इसे बदलने की मांग नहीं करेंगे. इन दोनों ने फैसले को चुनौती नहीं दी थी.
एक नए जज बेंच में
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच के एक सदस्य चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अब रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में पांच जजों का कोरम पूरा करने के लिए उनके बदले जस्टिस संजीव खन्ना को बेंच में शामिल किया गया था. उन्होंने मौजूदा CJI एस ए बोबड़े, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर के साथ मामले पर विचार किया. दोपहर 1.40 पर पांचों जज एक साथ बैठे और करीब 2.30 बजे तक आपस में चर्चा की. जिसके बाद सभी अर्ज़ियों को खारिज कर दिया गया.
क्यूरेटिव याचिका का विकल्प
पक्षकारों के पास अब भी संशोधन याचिका का विकल्प है. लेकिन क्यूरेटिव पेटिशन की जज रिव्यू पेटिशन से भी ज़्यादा कड़ी समीक्षा करता है. वह यह देखते हैं कि क्या फैसले में कोई ऐसी कमी रह गई जिसको दूर न करने से किसी पक्ष के साथ अन्याय हो जाएगा. कानून के जानकारों के मुताबिक 40 दिन की सुनवाई, 1045 पन्नों के फैसले और 19 पुनर्विचार याचिकाओं के खारिज होने के बाद क्यूरेटिव याचिका से भी फैसले में कोई बदलाव आने की उम्मीद न के बराबर ही है.
यह भी पढ़ें-
हैदराबाद एनकाउंटर की जांच के लिए SC ने बनाया आयोग, 6 महीने में आएगी रिपोर्ट