Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें रेप का आरोप लगाने वाली एक महिला की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री हुसैन के अधिवक्ता से न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, ‘‘ पहले इस मामले में निष्पक्ष जांच होने दें, यदि कुछ नहीं है, तो आप दोषमुक्त हो जाएंगे.’’


शाहनवाज हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ से कहा कि नेता के खिलाफ शिकायतकर्ता महिला की ओर से शिकायत पर शिकायत दर्ज कराई गई है. रोहतगी ने अपनी दलील में कहा, ‘‘शिकायत पर शिकायत दर्ज कराई गई है, जिसकी जांच पुलिस द्वारा की गई, लेकिन कुछ भी नहीं मिला. यह अनवरत जारी नहीं रह सकता.’’ रोहतगी ने कहा कि यह हुसैन के खिलाफ ‘अनवरत हमलों की श्रृंखला’ है.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


हालांकि, पीठ ने कहा, ‘‘हम हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते हैं. हाई कोर्ट ने पिछले साल 17 अगस्त को निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली हुसैन की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 2018 के आदेश में कुछ भी गड़बड़ी नहीं है. निचली अदालत ने दिल्ली पुलिस को उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था.


क्या थी शाहनवाज हुसैन की दलील?


शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त, 2022 को हाई कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसके पहले हुई सुनवाई के दौरान हुसैन के अधिवक्ता ने दलील दी थी कि शिकायत ‘फर्जी’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ है. वर्ष 2018 में दिल्ली की एक महिला ने कथित दुष्कर्म को लेकर हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध करते हुए यहां की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता ने इन आरोपों से इनकार किया है.


मजिस्ट्रेट अदालत ने सात जुलाई, 2018 को हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था. अदालत ने कहा था कि शिकायत में हुसैन के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला बनाया गया है. इस आदेश को बीजेपी नेता ने एक सत्र अदालत में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी.


इस मामले में हुसैन की अपील पर हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘‘मौजूदा याचिका में कोई दम नहीं है. याचिका खारिज की जाती है. हुसैन के खिलाफ कार्रवाई पर रोक से जुड़े अंतरिम आदेश को वापस लिया जाता है. अविलंब प्राथमिकी दर्ज की जाए.’’


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