सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 सितंबर) को गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें पति के अनैतिक आचरण के कारण शादी रद्द करने का आदेश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दंपति पुलिस की सुरक्षा में एक-दूसरे से मिले. हाईकोर्ट के फैसले को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इसके बाद पत्नी का पक्ष जानने पर पता चला कि उसके माता-पिता ने उसको जबरन पति से अलग रखा है. महिला ने अपनी और अपने पति की जान को खतरे की भी आशंका जताई थी.


याचिकाकर्ता पिंटूभाई रायचंदजी माली ने याचिका दाखिल कर अपने ससुराल वालों पर आरोप लगाया कि वे लोग उसकी पत्नी की शादी कहीं और करना चाहते हैं. याचिकाकर्ता ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, लेकिन कोर्ट ने उस पर पहली शादी के होते हुए दूसरी शादी करने के अनैतिक आचरण का आरोप लगाते हुए याचिका खारिज कर दी थी. 


मर्जी के बिना महिला को कैद में रखा गया
याचिकाकर्ता के वकील डीएन रे ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि फैसला सुनाने से पहले कम से कम महिला की इच्छा भी जाननी चाहिए. इस पर बेंच ने बनासकांठा फैमिली कोर्ट के जज को महिला से बात कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था. इसके बाद जज ने रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर बताया कि महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ कैद करके रखा गया है. महिला ने अपने माता-पिता और चाचा से उसकी और पिंटूभाई की जान को खतरे की आशंका भी जताई थी. 


दंपति को मिली पुलिस प्रोटेक्शन
रिपोर्ट के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि महिला को माता-पिता की कैद से मुक्त करने और पति के पास ले जाने के लिए तत्काल कदम उठाएं और अगर वह पति के साथ रहना चाहती है तो रह भी सकती है. इसके साथ ही जान को खतरे की बात को ध्यान में रखते हुए बेंच ने एसपी को महिला और उसके पति को एक साथ रहने पर पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का भी आदेश दिया.


हाईकोर्ट ने दिया था ये आदेश
पीठ ने महिला के माता-पिता और रिश्तेदारों को नोटिस जारी कर यह बताने को कहा है कि इच्छा के खिलाफ महिला को कैद करके रखने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए. बेंच ने हाई कोर्ट के उस आदेश पर भी रोक लगा दी, जिसमें याचिकाकर्ता के साथ महिला की शादी को रद्द को दिया गया था. हाईकोर्ट ने रायचंद माली की हिबीज कॉर्पस पीटिशन को खारिज कर दिया था और 10,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा था कि उसकी याचिका को अनुमति देने से अनैतिकता को बढ़ावा मिलेगा.


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