नई दिल्ली: नौसेना की सेवा से हटाए जा चुके विमानवाहक युद्धपोत INS विराट को तोड़ने पर लगी रोक आज सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी. 10 फरवरी को एक कंपनी की याचिका पर कोर्ट ने जहाज तोड़ने पर रोक लगाई थी. यह कंपनी INS विराट को खरीद कर उसे संरक्षित करना चाहती थी ताकि आने वाले समय में लोग उसे देख सकें.


चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज कहा कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने में बहुत देर कर दी. जहाज को 40 प्रतिशत तोड़ा जा चुका है. कोर्ट ने यह भी कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को रक्षा मंत्रालय को ज्ञापन सौंपने के लिए कहा था, लेकिन सरकार ने मांग को स्वीकार नहीं किया. एक निर्णय लिया जा चुका है. इसमें अब दखल देना सही नहीं होगा.


याचिकाकर्ता ने जहाज के ऐतिहासिक महत्व की दलील दी. उन्होंने कहा कि अगर इसे संग्रहालय बनाया गया तो भविष्य में इसे देखने वालों में देशभक्ति की भावना जगेगी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “जहां तक देशभक्ति का सवाल है, हम आपसे सहमत हैं. लेकिन किसी ने पैसे देकर इस जहाज को खरीदा है. उसे 40 प्रतिशत तोड़ा भी जा चुका है. अब इस प्रक्रिया को नहीं रोक जा सकता.“


50 के दशक में ब्रिटिश नौसेना में HMS हर्मस के नाम से शामिल हुए इस जहाज को बाद में भारत सरकार ने खरीद लिया. उसे 1987 में भारतीय नौसेना को दिया गया. नाम रखा गया INS विराट. करीब 3 दशक की सेवा के बाद उस जहाज को हटाने का फैसला किया गया. भावनगर की श्रीराम ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़ ने इसे खरीद लिया. 28 सितंबर 2020 को इसे गुजरात के अलंग पोर्ट में लाया गया, जहां इसे कबाड़ के रूप में तोड़ा जा रहा है.


एनविटेक मरीन कंसल्टेंट्स लिमिटेड नाम की कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह बताया था कि उसने रक्षा मंत्रालय से इस जहाज को खरीदने की अनुमति मांगी थी. उसका उद्देश्य इसे एक संग्रहालय में बदलने का था. इससे आम लोग और आने वाली पीढियां इसे देख सकेंगी. लेकिन सरकार ने पुराने जहाज को तोड़ने को नीतिगत मसला बताते हुए इससे मना कर दिया.


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