नई दिल्ली: कोरोना से बचने के लिए दो लोगों के बीच जरूरी दूरी को सोशल डिस्टेंसिंग कहे जाने पर एतराज जताने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता ने इस शब्द को भेदभाव भरा बताया था. उसका कहना था कि इससे अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए 10 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया.


जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और बी आर गवई याचिकाकर्ता शकील कुरैशी की बात पर चौंक पड़े. याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने जिरह के शुरुआत ही यह कहते हुए कि वह सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का विरोध कर रहे हैं. इससे अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है.


बेंच के सदस्य जस्टिस कौल ने कहा, “आप इसमें भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का मुद्दा ढूंढ लाए? भला बीमारी से बचने के लिए किए जा रहे हैं उपाय पर आपको क्या आपत्ति है?”


वकील एस बी देशमुख ने कहा, “बीमारी से लड़ने के लिए दो लोगों के बीच सुरक्षित दूरी जरूरी है. लेकिन इसे फिजिकल डिस्टेंसिंग कहना चाहिए. उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग और सामाजिक दूरी जैसे शब्द इस्तेमाल हो रहे हैं. हमारा मानना है कि यह शब्द भेदभाव भरे हैं. इससे अल्पसंख्यकों और दूसरे कमजोर तबकों से भेदभाव हो सकता है.“


सुनवाई के दौरान मौजूद सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों की बताया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य शब्द सोशल डिस्टेंसिंग का सरल हिंदी अनुवाद सामाजिक दूरी है. इससे किसी को आपत्ति हो गई, यह हैरान करने वाली बात है.


इस पर जस्टिस कौल ने कहा, “लॉकडाउन के दौरान कोई कुछ भी याचिका दाखिल कर दे रहा है. हम बार-बार वकीलों को आगाह कर रहे हैं कि ऐसा न करें. अब यह किस तरह की याचिका है? आखिर ऐसी याचिका दाखिल करने वाले पर जुर्माना क्यों नहीं लगना चाहिए?”


इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता पर व्यर्थ याचिका दाखिल कर कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए 10 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया.


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