नई दिल्ली: सहारा-बिड़ला डायरी मामले में जांच की मांग सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है. इस मामले में पीएम का भी नाम खींचा गया था. आज कोर्ट ने याचिकाकर्ता की तरफ से पेश सबूतों को नाकाफी करार दिया.
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अमिताव राय की बेंच ने कहा - "कुछ कागजों के आधार पर एफआईआर का आदेश नहीं दिया जा सकता. उनकी पुष्टि करने वाले दूसरे सबूत ज़रूरी हैं."
याचिकाकर्ता कॉमन कॉज़ के वकील प्रशांत भूषण ने लगभग 2 घंटे तक कोर्ट को इस बात के लिए आश्वस्त करने की कोशिश की कि मामले में एफआईआर दर्ज होना ज़रूरी है. भूषण ने कहा कि लोगों तक ये संदेश जाना चाहिए कि कोई कितना भी बड़ा हो, कानून से ऊपर नहीं है.
जवाब में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि किसी छापे में मिला कागज़ उन लोगों के खिलाफ एफआईआर का आधार नहीं बन सकता जिनके नाम उस कागज़ में लिखे हैं. अगर ऐसा किया गया तो देश भर में लाखों मामले दर्ज होने लगेंगे.
लगभग साढ़े 3 घंटे चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से फैसला लिखवाया. कोर्ट ने कहा - "ये सच है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. अदालत किसी के भी खिलाफ जांच का आदेश दे सकती है. लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि पेश किए गए सबूत इस लायक हों."
2013 और 14 में बिड़ला और सहारा समूह के दफ्तर पर पड़े छापों में कुछ कागजात मिले थे. इनमें कई बड़े नेताओं औऱ नौकरशाहों को पैसे देने की बात लिखी गयी थी. इन्हीं कागज़ात के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग की गयी थी.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन कागज़ों के आधार पर पीएम पर हमला किया था. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें जांच के लिए नाकाफी करार दिया. कोर्ट ने कहा, "किसी भी नेता या नौकरशाह के खिलाफ मामला बनता नज़र नहीं आ रहा है."