Supreme Court On EWS: आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराने वाले फैसले पर दोबारा विचार नहीं होगा. इस बारे में दाखिल पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 मई) को खारिज कर दिया है. पिछले साल 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस (EWS) आरक्षण को संवैधानिक माना था. इसके खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर 9 मई को 5 जजों की बेंच ने विचार किया था.


7 नवंबर 2022 को दिए ऐतिहासिक फैसले में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन को सही करार दिया था. इसी संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि इस तरह का आरक्षण संवैधानिक है और यह किसी भी दूसरे वर्ग के अधिकार का हनन नहीं करता है.


आरक्षण के खिलाफ लगी थीं 30 से अधिक याचिकाएं


जनवरी 2019 में संविधान में किए गए 103वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को जोड़ा गया था. इसके जरिए सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए विशेष व्यवस्था बना सकती है. इसके बाद सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरी और उच्च शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई. इसे सुप्रीम कोर्ट में 30 से अधिक याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी. 


पहले भी कोटे को रखा था बरकरार 


पिछले साल तत्कालीन चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने मामले को सुना था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, बेला एम त्रिवेदी और जमशेद पारडीवाला ने EWS आरक्षण को सही करार दिया था. इन जजों ने माना था कि संविधान ने सरकार का यह कर्तव्य तय किया है कि वह हर तरह के कमजोर तबके को उचित प्रतिनिधित्व दे कर उसे मुख्यधारा में लाने की कोशिश करे. ऐसे में गरीबी के चलते पिछड़ रहे सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने की व्यवस्था बनाने में कोई संवैधानिक गलती नहीं है. 


क्या कहा था जजों ने?


तीनों जजों ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पहले से आरक्षण पा रहे SC, ST और OBC के लिए तय की थी. नया 10 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग को दिया गया है. ऐसे में इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है. जजों ने यह भी कहा था कि इस 10 प्रतिशत आरक्षण में SC, ST और OBC का कोटा तय करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह वर्ग पहले से आरक्षण का लाभ ले रहा है.


चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का फैसला अल्पमत का रहा था. उन्होंने कहा था कि गरीबी के आधार पर आरक्षण देते समय SC, ST और OBC के गरीबों को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. यह भेदभाव है और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.


फैसले में कोई कानूनी गलती नहीं


जस्टिस उदय उमेश ललित के रिटायर हो जाने के चलते EWS आरक्षण फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिका पर वर्तमान चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पुनर्विचार याचिका को देखा. बेंच के बाकी चारों सदस्य वही थे, जो मूल फैसले का हिस्सा थे. जजों ने माना है कि पिछले साल दिए गए फैसले में कोई कानूनी गलती नहीं है. ऐसे में मामले पर दोबारा सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है.


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