EWS Quota: ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर SC के फैसले को लेकर क्या बोलीं कांग्रेस-बीजेपी? प्राइवेट सेक्टर में भी रिजर्वेशन की उठी मांग
EWS Quota: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिले आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट के बरकरार रखने के फैसले का कांग्रेस और बीजेपी ने स्वागत किया है. वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विरोध किया है.
EWS Quota Case: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट के बरकरार रखे जाने पर सोमवार (7 नवंबर) को बीजेपी और कांग्रेस ने इससे जुड़े संविधान संशोधन का श्रेय लेने की कोशिश की.
वहीं, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कोर्ट के फैसले की आलोचना की और इसे लंबे समय तक चले ‘‘सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका’’ करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा.
कोर्ट ने कहा कि यह कोटा संविधान के ‘‘मूल ढांचे’’ का उल्लंघन नहीं करता है. बीजेपी ने कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह देश के गरीबों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के ‘‘मिशन’’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत है.
'प्राइवेट क्षेत्र में भी हो आरक्षण'
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि यह निहित स्वार्थ वाले दलों के चेहरे पर करारा तमाचा है, जिन्होंने अपने दुष्प्रचार के जरिये लोगों के बीच वैमनस्य पैदा करने का प्रयास किया. बीजेपी की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग की.
कांग्रेस ने भी कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कहा कि इस कोटे का प्रावधान करने वाला संविधान संशोधन मनमोहन सिंह सरकार की शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा था.
कांग्रेस ने क्या कहा?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती है. उन्होंने कहा, ‘‘यह संविधान संशोधन 2005-06 में मनमोहन सिंह की सरकार के सिन्हा आयोग का गठन करके शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा है. आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट दी थी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद, व्यापक रूप से परामर्श किया गया और विधेयक 2014 तक तैयार कर लिया गया था, लेकिन मोदी सरकार को यह विधेयक पारित कराने में पांच साल लगा.’’
The Congress party welcomes the Supreme Court's verdict to uphold the 10% quota for EWS category. Congress played a significant role in this journey.
— Congress (@INCIndia) November 7, 2022
While we must applaud the decision, the govt must also make clear where it stands on an updated caste census.
:Shri @Jairam_Ramesh pic.twitter.com/PWrKboFcNP
हमने किया यह काम
जयराम रमेश ने कहा, ‘‘यह जिक्र करना भी जरूरी है कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना को 2012 तक पूरा कर लिया गया था, जब मैं ग्रामीण विकास मंत्री था. मोदी सरकार को स्पष्ट करना होगा कि नई जातिगत जनगणना को लेकर उसका क्या रुख है. कांग्रेस इसका समर्थन करती है और इसकी मांग भी करती है.’’
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला गरीबों को न्याय दिलाने में मदद करेगा. उन्होंने वडोदरा में रिपोर्टरों से कहा, ‘‘समितियां बनाई गईं और आखिरकार 103वां संविधान संशोधन किया गया. मैं सुप्रीम कोर्ट फैसले का स्वागत करता हूं. हमारी यह भावना होनी चाहिए कि गरीब व्यक्ति चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसे न्याय मिले.’’
'ऐतिहासिक क्षण है'
कांग्रेस के पूर्व नेता और पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि कोर्ट का बहुमत वाला फैसला लोकतंत्र की समतावादी पहुंच के प्रगतिशील विकासक्रम में एक ऐतिहासिक क्षण है. उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘अपने सार में, यह स्वीकार करता है कि कहीं भी और किसी भी वर्ग में गरीबी सबसे बड़ी बाधक है और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित लोग एक कल्याणकारी राज्य में सरकार के सकारात्मक कार्य का लाभ पाने के हकदार हैं.’’
संसद ने बीजेपी सरकार के लाये गये संविधान संशोधन विधेयक को 2019 में पारित किया था. हालांकि, हर किसी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया. कांग्रेस प्रवक्ता उदित राज ने कहा कि वह इस कदम का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन संविधान के नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लगाई गई 50 प्रतिशत की सीमा इस फैसले के साथ टूट गई है.
'गरीब विरोधी मानसिकता को दिखाता'
उदित राज ने कहा, ‘‘30 वर्षों से, जब कभी हम इस न्यायालय में गए, उच्चतम न्यायालय ने सदा ही यह कहा कि यह लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए और हमारे मामले खारिज कर दिए गए. मैं सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की मानसिकता का मुद्दा उठा रहा हूं, ये लोग जातिवादी मानसिकता के हैं.’’ साथ ही, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी टिप्पणी व्यक्तिगत क्षमता से है और इसका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है. बीजेपी ने उनकी आलोचना करते हुए कहा कि उनके बयान ने विपक्षी दल की ‘‘गरीब विरोधी’’ मानसिकता को बेनकाब दिया है.
सीएम एम. के. स्टालिन ने क्यों किया विरोध?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सदियों पुराने सामाजिक न्याय के संघर्ष को एक झटका है. उन्होंने कहा, हालांकि फैसले के गहन विश्लेषण के बाद कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए अगले कदम पर फैसला लिया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘‘सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए पहला संविधान संशोधन कराने वाली तमिलनाडु की इस धरती से मैं समान विचारधारा वाले सभी संगठनों से सामाजिक न्याय की आवाज को पूरे देश में प्रतिध्वनित करने के लिए एकजुट होने का अनुरोध करता हूं.’’
विदुथलाई चिरूथैगल काची (VCK) प्रमुख थोल तिरूमावलन ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला सभी जातियों के गरीबों के लिए नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘यह अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए है। इस मामले में, यह आर्थिक मानदंड के आधार पर लिया गया फैसला कैसे है?’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है. यह घोर अन्याय है.’’ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी फैसले को चुनौती देते हुए अपील करेगी. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय ने कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया. हालांकि, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रे ने इस पर टिप्पणी नहीं की.