नई दिल्ली: देश में किसी व्यक्ति या संस्था पर संवैधानिक संकट या अत्याचार की स्थिति होती है तो न्याय की उम्मीद लिए सबसे पहले न्यायालय के दरवाजे पर दस्तक देते हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि देश की सबसे बड़ी अदालत इस वक्त एक गंभीर संकट से जूझ रही है, यह संकट सुप्रीम कोर्ट में जजों की घटती संख्या का है.


सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त तय संख्या से कम जज हैं. अगर समय रहते सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाले कोलेजियम की तरफ से खाली पदों को भरने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.


करीब एक दशक पहले साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जजों की 26 से 31 जजों की संख्या निर्धारित की गयी थी. इसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी शामिल हैं. इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में तीस जज हैं लेकिन आने वाले छह महीने में सुप्रीम कोर्ट से पांच जज रिटायर होने वाले हैं. इनमें जस्टिस इंदु मल्होत्रा (13 मार्च), चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बोबडे (23 अप्रैल), जस्टिस अशोक भूषण (4 जुलाई), जस्टिस आरएफ नरीमन (12 अगस्त) और जस्टिस नवीन सिन्हा (18 अगस्त) शामिल हैं.


इन सभी के रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या साल 1988 के स्तर पर आ रही है, तब इसे 18 से बढ़ाकर 26 किया गया था. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 की गयी थी.


पिछले साल दो सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के रिटायर होने के बाद से सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की बैठक नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट के इस कोलेजियम में सीजेआई एएस बोबडे, जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एएम खानविल्कर हैं. यह कोलेजियम हाई कोर्ट से और सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ वकीलों का चयन सुप्रीम कोर्ट में जज के पद के लिए करता है. सुप्रीम कोर्ट में किसी जज की आखिरी नियुक्ति करीब 18 महीने पहले 23 सितंबर 2019 को जस्टिस ऋषिकेश रॉय के तौर पर हुई थी.


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