हैदराबाद एनकाउंटर की जांच के लिए SC ने बनाया आयोग, 6 महीने में आएगी रिपोर्ट
हैदराबाद एनकाउंटर मामले की जांच के दायर याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में आयोग 6 महीने के अंदर रिपोर्ट दे.
नई दिल्ली: हैदराबाद एनकाउंटर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आयोग का गठन किया है. इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के ही रिटायर्ड जस्टिस वी एस सिरपुरकर करेंगे. तीन सदस्यीय आयोग में मुंबई हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज रेखा बलडोटा और पूर्व सीबीआई प्रमुख वी एस कार्तिकेयन भी शामिल होंगे. कोर्ट ने आयोग से काम शुरू करने के 6 महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है.
क्या थी घटना
26 नवंबर की रात हैदराबाद में अपनी ड्यूटी से लौट रही 27 साल की एक वेटनरी डॉक्टर (पशु चिकित्सक) को अगवा किया गया था. उनका बलात्कार करने के बाद उनकी हत्या की गई थी और उन्हें पेट्रोल से जला दिया गया था. इस घटना से पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी थी. हैदराबाद पुलिस ने 4 आरोपियों को इस मामले में गिरफ्तार किया. 6 दिसंबर को तड़के करीब 3 बजे पुलिस की एक टीम चारों को लड़की को जलाने की जगह पर ले कर गई. उसका मकसद वारदात के घटनाक्रम की जानकारी जुटाने के साथ कुछ सबूतों की बरामदगी थी. पुलिस के दावे के मुताबिक वहां आरोपी पुलिस पर हमला कर भागने लगे. इस वजह से उनका एनकाउंटर किया गया और चारों मारे गए.
3 वकीलों की याचिका
सुप्रीम कोर्ट में तीन वकीलों ने याचिका दायर कर पूरे मामले को संदिग्ध बताया है. उनका कहना है कि पुलिस ने जिस तरह से चारों लोगों को मार गिराया, वह सीधे-सीधे दबाव का नतीजा नजर आता है. पूरी कार्यवाही पुलिस नियमावली के खिलाफ थी. इस तरह से न्यायिक प्रक्रिया की उपेक्षा कर पुलिस का खुद इंसाफ करना सही नहीं है. पुलिस ने जो कार्यवाही की वह सुप्रीम कोर्ट के भी पुराने फैसलों की अवहेलना है. ऐसे में मामले की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए.
तेलंगाना सरकार ने किया विरोध
आज तेलंगाना सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को मामले में दखल नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा, "चारों आरोपियों ने पुलिस की पिस्टल छीन ली थी और गोली चला रहे थे. उन्होंने पत्थरों से भी हमला किया. चेतावनी देने के बावजूद समर्पण नहीं किया और भागने लगे. तब पुलिस ने गोली चलाई. 3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने रोहतगी के बयान पर हैरानी जताई. उन्होंने पूछा, "क्या सभी आरोपियों के पास पिस्टल थी. चारों को मार गिराने की नौबत क्यों आई? हम यह समझ नहीं पा रहे हैं."
मुकुल रोहतगी ने आगे कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल बनाम भारत सरकार मामले में फैसला दिया था कि अगर कोई एनकाउंटर हो तो जिस थाने की टीम ने एनकाउंटर किया है उससे अलग किसी और थाने के लोग जांच करें. एनकाउंटर करने वाली टीम के ऑफिसर से भी ज्यादा रैंक वाला कोई अफसर मामले की जांच करे. हमने इस आदेश का पालन करते हुए एक एसआईटी बनाई है.एसआईटी की अध्यक्षता कमिश्नर रैंक के एक अधिकारी कर रहे हैं. एसआईटी निचली अदालत के जज को रिपोर्ट सौंपेगी और वह आगे की कार्रवाई तय करेंगे.
CJI का सीधा सवाल
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "क्या आप हमें यह वचन दे सकते हैं कि एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों पर मुकदमा चलेगा? अगर हां तो हमारे किसी आदेश की जरूरत नहीं है. लेकिन ऐसा लगता है कि आप खुद ही उनको निर्दोष मानते हैं. एसआईटी भी जो भी रिपोर्ट देगी उसमें शायद यही बात कही जाए. सारी गलती मारे गए चारों लोगों पर मढ़ ती जाएगी. पुलिस जो गवाह कोर्ट में पेश करेगी उनसे मारे गए लोगों की तरफ से कौन पूछताछ करेगा? यह मुकदमा होगा या मजाक? आखिर उस रात क्या हुआ, यह कैसे पता चलेगा?"
6 महीने में रिपोर्ट
इसके बाद चीफ जस्टिस ने आदेश लिखवाना शुरू किया. उन्होंने तीन सदस्यीय जांच आयोग बनाते हुए कहा, "जांच आयोग का दफ्तर हैदराबाद में होगा. आयोग के अध्यक्ष तय करेंगे उन्हें सुनवाई कब से शुरू करनी है. सुनवाई शुरू करने के 6 महीने के भीतर वह सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंप देंगे." सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग का पूरा खर्चा तेलंगाना सरकार को उठाने के लिए कहा है. जांच आयोग एसआईटी से रिपोर्ट लेने के साथ ही पुलिस वालों के और निष्पक्ष गवाहों के बयान दर्ज करेगा. साथ ही, मामले के उपलब्ध सभी तथ्यों को देखकर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देगा. कोर्ट ने जांच आयोग के सदस्यों को सीआरपीएफ की सुरक्षा दिए जाने का भी आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तेलंगाना हाईकोर्ट और NHRC में चल रही कार्रवाई पर भी रोक लगा दी.आदेश में यह भी साफ किया है कि अब 3 सदस्यीय नए आयोग के अलावा कोई भी कोर्ट या आयोग इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं करेगा.
अपराध की गंभीरता जानते हैं
सुनवाई के दौरान कोर्ट का रुख देखकर तीन याचिकाकर्ताओं में से एक वकील एम एल शर्मा ने मारे गए चारों आरोपियों के परिवार को मुआवजा देने की मांग कर डाली. इस तरह का कोई भी आदेश देने से मना करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, "हम जांच का आदेश इसलिए दे रहे हैं ताकि घटना की सच्चाई लोगों के सामने आ सके. इसका मतलब यह नहीं है कि मारे गए लोगों के ऊपर लगे आरोपों की गंभीरता से हमने आंखें बंद कर ली है. हमें इसका पूरा एहसास है."