नई दिल्ली: आज सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर फैसला सुनाया जिसके बाद मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया है. अब केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वो एक ट्रस्ट बनवाए जो मंदिर की जिम्मेदारी संभालेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के तमाम दलों और लोगों ने फैसले को ऐतिहासिक बताया.
आज सुबह से ही पूरा देश दम साधे एक फैसले का इंतजार कर रहा था. अयोध्या में हर नजर टीवी पर गड़ी हुई थी. सबको बस एक सवाल का जवाब चाहिए था कि देश की सबसे बड़ी अदालत क्या फैसला सुनाएगी. सुबह के ठीक 10 बजकर 28 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच बैठ चुकी थी. 10 बजकर 31 मिनट पर अयोध्या विवाद से जुड़े फैसले पर पाचों जजों ने दस्तखत किए, जिसके साथ ये तय हो गया कि जो फैसला सुनाया जाएगा वो एकमत से लिया गया है.
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सिर्फ 43 मिनटों में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने भारत के सबसे लंबे मुकदमे का फैसला पढ़ दिया. इसकी शुरूआत में चीफ जस्टिस ने कहा कोर्ट को देखना है कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने. फैसले के दौरान ये भी कहा गया कि संविधान में हर मजहब के लोगों को एक जैसा सम्मान दिया गया है. और यही बात सुप्रीम कोर्ट के फैसले में नजर भी आयी. 40 दिनों की सुनवाई के दौरान इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों ने अपनी दलीलें रखी थीं.
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कोर्ट ने आज उन तमाम दलीलों और सबूतों का जिक्र करते हुए कहा कि निर्मोही अखाड़ा जमीन पर कब्जे के अपने दावे को साबित नहीं कर पाया, इसलिए उनके दावे को खारिज किया जाता है. निर्मोही अखाड़े के बाहर होने का मतलब इस विवाद में सिर्फ दो पक्ष बचे- एक रामलला विराजमान और दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड. इन दोनों में किसके हक में फैसला होगा ये बताने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ASI की रिपोर्ट का जिक्र किया.
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चीफ जस्टिस ने कहा- पुरातात्विक सबूतों की अनदेखी नहीं की जा सकती. विवादित ढांचे के नीचे जो कलाकृतियां मिलीं वो इस्लामिक नहीं थीं. नीचे एक विशाल रचना थी. साफ है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी. ASI के मुताबिक वहां 12वीं सदी का मंदिर था. हालांकि ASI ये नहीं बता पाया कि विवादित ढांचा मंदिर तोड़कर बना था या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अयोध्या में राम के जन्म होने के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया. हिंदू वहां पूजा करते रहे इस बात के भी साक्ष्य मिले. 1856 से पहले हिंदू अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे. हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे गर्भगृह मानते थे. जब उन्हें रोका गया तो बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे.
वहीं विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर मुस्लिम पक्ष के दावों पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए. अपने फैसले के पेज नंबर 791 के पैरा नंबर 678 में कोर्ट ने लिखा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के मुताबिक 1528 में मस्जिद बनने के बाद से मुसलमान वहां नमाज पढ़ते थे लेकिन 1856 तक वहां नमाज पढ़े जाने के कोई सबूत नहीं मिले. कोर्ट न ये भी कहा कि मुस्लिम पक्ष इमारत के अंदरूनी हिस्से में सिर्फ अपना कब्जा भी साबित नहीं कर पाए. 1856 से पहले हिंदू भी अंदरूनी हिस्से में पूजा करते थे.
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 134 साल पुराने मुकदमे में अपना फैसला सुना दिया. फैसले के मुताबिक 2.77 एकड़ की विवादित जमीन रामलला को मिली यानी अयोध्या में जन्मस्थान पर ही मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया. मंदिर बनाने की जिम्मेदारी एक ट्रस्ट को मिलेगी. केंद्र सरकार को 3 महीने में ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया है. केंद्र चाहे तो जमीन के हक से बाहर किए गए निर्मोही अखाड़े को मंदिर के ट्रस्ट में जगह दे सकती है.
वहीं मुस्लिम पक्ष को किसी और जगह पर 5 एकड़ जमीन देने के लिए कहा गया है. सरकार तय करेगी कि ये जमीन अधिगृहीत जमीन के अंदर हो या अयोध्या में ही किसी और जगह पर. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर मुस्लिम पक्ष को जमीन दी लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब मंदिर निर्माण के वक्त और तरीके को लेकर भी तैयारियां शुरू हो गयी हैं. आरएसएस के सूत्रों के मुताबिक अगले साल मंदिर के निर्माण का काम शुरू हो जाएगा. वहीं वीएचपी का कहना है मंदिर बनाने के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा किया जाएगा. हालांकि फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में वीएचपी होगी भी या नहीं.