सुप्रीम कोर्ट ने देश की विभिन्न हाईकोर्ट के जजों की सोच के तौर-तरीकों पर सोमवार (21 अक्टूबर, 2024) को चिंता व्यक्त की और इसे न्यायपालिका की छवि गिराने का प्रयास करार दिया. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पी के मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है. कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि उसके बार-बार कहे जाने का हाईकोर्ट के जजों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, साथ ही इसके निर्णयों की लगातार अनदेखी की जाती है.


कोर्ट ने कहा कि इसका नतीजा यह हुआ है कि विपरीत परिस्थितियों में हाईकोर्ट के जजों के काम करने के बावजूद कुछ न्यायाधीशों की वजह से न्यायिक प्रणाली बदनाम हो रही है. ऐसे लोग सम्पूर्ण न्यायपालिका की खराब छवि प्रस्तुत कर रहे हैं.


बेंच ने कहा, 'हाल के दिनों में, एक से अधिक अवसरों पर, इस न्यायालय ने देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के व्यवहार और विचार पैटर्न को देखते हुए स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू की है. ऐसे व्यवहार से सामान्य रूप से न्यायपालिका और विशेष रूप से हाईकोर्ट की छवि खराब हुई है.'


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी न्यायाधीश का निर्धारित मानकों से विचलित होना उसके द्वारा राष्ट्र के भरोसे का कत्ल करने के समान होगा. कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गुजरात उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने एक मार्च, 2023 को वकील की दलीलें सुनने के बाद आदेश नहीं सुनाया था और उच्च न्यायालय के आईटी सेल ने याचिकाकर्ता को एक साल बाद 30 अप्रैल, 2024 को तर्कपूर्ण आदेश की सॉफ्ट कॉपी दी थी.


बेंच ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में कानून का घोर उल्लंघन किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'समाज हाईकोर्ट के हर जज से अपेक्षा करता है कि वह सत्यनिष्ठा का आदर्श हो, निर्विवाद निष्ठा और अडिग सिद्धांतों का प्रतीक हो, नैतिक उत्कृष्टता का समर्थक हो और व्यावसायिकता का प्रतीक हो, जो न्याय की गारंटी देते हुए लगातार उच्च गुणवत्ता वाला काम कर सके.' हालांकि, संबंधित जज के प्रति नरम रुख अपनाते हुए बेंच ने अपीलकर्ता की याचिका को पुनर्जीवित किया और इसे हाईकोर्ट की फाइल में बहाल कर दिया.


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