सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 अगस्त, 2024) को एक शख्स के मुआवजे में देरी को लेकर नाराजगी जताते हुए महाराष्ट्र सरकार के आईएएस अधिकारी को फटकार लगाई है. इस शख्स की जमीन पर महाराष्ट्र सरकार ने छह दशक से ज्यादा समय तक अवैध कब्जा किया हुआ था. कोर्ट ने सरकार से पूछा कि मुआवजे की गणना करने में देरी और लापरवाही भरा रवैया क्यों अपनाया जा रहा है.


जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने वन एवं राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इसमें कोर्ट पूछा कि विभाग की ओर से दायर हलफनामे में की गई अवमाननापूर्ण टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ अवमानना ​​की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए.


बेंच ने सीनियर आईएएस अधिकारी को नौ सितंबर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा, 'जब राज्य ने मुआवजे की पुनर्गणना के विशेष उद्देश्य के लिए समय मांगा है, तो ऐसा किया जाना चाहिए था. ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य टालमटोल की रणनीति अपना रहा है.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हलफनामे से ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार मुआवजा देने के प्रति गंभीर नहीं है.


बेंच ने इस तरह का हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य सरकार के वकील निशांत आर. कटनेश्वरकर और दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी की खिंचाई की. वकील ने जब हलफनामा वापस लेने और नया हलफनामा दायर करने का अनुरोध किया तो पीठ ने कटनेश्वरकर से कहा, 'आप हलफनामे में कुछ भी लिखते हैं, अधिकारी हलफनामे पर हस्ताक्षर कर देता है और आप हमसे उम्मीद करते हैं कि हम कुछ नहीं करेंगे.' पीठ ने चेतावनी दी कि अगर महाराष्ट्र सरकार आवेदक को देय मुआवजे की पुनर्गणना नहीं करती है तो वह राज्य में हाल ही में शुरू की गई लाडकी बहिन योजना को रोक देगी.


कोर्ट ने कहा, 'कानून का पालन करना और मुआवजे के भुगतान के उचित निष्कर्ष पर पहुंचना राज्य सरकार का परम कर्तव्य है.' उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारी किसी मनमौजी विचार का अनुसरण नहीं कर सकता और कानून का पालन करने से बच नहीं सकता.


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