'जुर्माना दें, किसी को ऐसे अदालतों के चक्कर लगवाते हैं?', NMC पर क्यों गुस्सा हो गया SC और लगा दिया 10 लाख रुपये का फाइन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया लगता है कि एनएमसी का रवैया आदर्श याचिकाकर्ता का नहीं है. एनएमसी सरकार का एक अंग है और उसे निष्पक्ष और उचित तरीके से काम करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की याचिका खारिज करते हुए कहा कि एनएमसी सरकार का एक अंग हैं, उससे निष्पक्ष और तर्कसंगत तरीके से काम करने की अपेक्षा की जाती है. इसके साथ ही, कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं और याचिकाकर्ताओं पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ एनएमसी और अन्यों की उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जो एक मेडिकल कॉलेज को शिक्षण वर्ष 2023-24 के लिए सीट की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने की दी गई मंजूरी वापस लेने के संबंध में दायर की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी पक्ष को मंजूरी के लिए एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट का चक्कर लगवाना सिर्फ उस संस्थान को परेशान करने का प्रयास है. खासतौर पर जब संस्थान 18 सालों से संचालित होता रहा है. बेंच ने 9 सितंबर को पारित अपने आदेश में कहा, 'प्रथम दृष्टया हमें लगता है कि एनएमसी का रवैया आदर्श याचिकाकर्ता का नहीं है. एनएमसी सरकार का एक अंग है और उससे निष्पक्ष और उचित तरीके से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है.'
पीठ ने कहा, 'इसलिए हमारा मानना है कि वर्तमान विशेष अनुमति याचिकाएं कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं और इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है और 10,00,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाता है, जिसका भुगतान इस आदेश की तारीख से चार हफ्हते के अंदर किया जाना चाहिए.'
पीठ ने कहा कि एनएमसी और अन्य ने हाईकोर्ट के 13 अगस्त के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें मेडिकल कॉलेज को लिखित वचन देने (अंडरटेकिंग) का निर्देश दिया गया था. अदालत ने आयोग को यह भी निर्देश दिया था कि अंडरटेकिंग प्राप्त करने के बाद आयोग संबंधित संस्थान को मंजूरी प्रदान करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों को देखने से पता चला है कि मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड (एमएआरबी) की ओर से 27 फरवरी 2023 को एक पत्र जारी करके मेडिकल कॉलेज को शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के लिए सीट की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने की प्रारंभिक मंजूरी दी गई थी. पीठ ने कहा, 'बाद में एमएआरबी की ओर से पांच अप्रैल 2023 को जारी एक पत्र में इसे वापस ले लिया गया.' पीठ ने कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए प्रस्ताव को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता.
बेंच ने कहा कि यदि एनएमसी को कोई संदेह था तो वह संबंधित अदालत से संपर्क कर स्पष्टीकरण मांग सकता था. वहीं, एनएमसी के वकील ने पीठ को बताया कि अनुमति की प्रक्रिया को लेकर वार्षिक आधार पर विचार किया जाना है और पहले की अस्वीकृति शैक्षणिक वर्ष 2023-2024 के लिए थी. पीठ ने कहा कि पांच लाख रुपये का जुर्माना सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन में और शेष राशि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में जमा किया जाए.
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