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CAA पर जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 4 हफ्ते का दिया वक्त, फिलहाल कानून पर रोक नहीं
कोर्ट ने आज जहां सरकार को जवाब के लिए 4 हफ्ते का समय दिया, वहीं याचिकाकर्ताओं को भी सरकार के हलफनामे का जवाब देने के लिए 1 हफ्ता दिया. ऐसे में यही लगता है कि मामला शायद मार्च के पहले हफ्ते में सुनवाई के लिए लगेगा.
नई दिल्लीः नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA पर फिलहाल रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने इस बारे में दाखिल सभी याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने को कहा है. सरकार को जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का वक्त दिया गया है. कोर्ट ने आज इस बात के संकेत दिए कि मामले को 5 जजों की संविधान पीठ में भेजा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में आज इस मसले पर 144 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी थीं. खचाखच भरे कोर्ट रूम में बहस की शुरुआत CAA का विरोध कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने की.
पक्ष और विपक्ष के वकील का बयान
कपिल सिब्बल ने कहा, "हम कानून पर रोक की मांग नहीं कर रहे हैं. लेकिन फिलहाल इसके अमल को स्थगित कर दिया जाए." केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में मौजूद एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इसका विरोध करते हुए कहा, "कोर्ट को ऐसा कोई आदेश नहीं देना चाहिए. ऐसा करना एक तरह से कानून पर रोक लगाने जैसा ही होगा." वेणुगोपाल की इस दलील पर 3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने भी सहमति जताई.
एटॉर्नी जनरल ने कहा, "दिसंबर में जब यह मामला सुनवाई के लिए लगा था तब 60 याचिकाएं थीं. हमने उन पर जवाब दाखिल कर दिया है. लेकिन आज सुनवाई की लिस्ट में 144 याचिकाएं हैं. यानी 80 से भी ज्यादा नई याचिकाएं हैं, जिन्हें हमने देखा भी नहीं है. हमें इन पर जवाब देने के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया जाना चाहिए."
श्याम दीवान ने ज्यादा वक्त मांगे जाने का किया विरोध
CAA का विरोध कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान समेत कई वकीलों ने इतना लंबा वक्त मांगे जाने का विरोध किया. चीफ जस्टिस ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि सरकार को 4 हफ्ते का ही वक्त दिया जाएगा.
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने चर्चा को आगे बढाते हुए कहा, "CAA को लेकर अभी नियम नहीं बने हैं. उससे पहले ही उत्तर प्रदेश में 40 हजार लोगों की पहचान कर ली गई है, जिन्हें नागरिकता दी जाएगी. एक बार अगर नागरिकता दे दी गई, तो उसे वापस नहीं लिया जा सकेगा. इसलिए, कोर्ट फिलहाल सरकार से कानून के आधार पर कोई भी कदम न उठाने के लिए कहे." कोर्ट में मौजूद इंदिरा जयसिंह, राजीव धवन जैसे वकीलों ने भी इस मांग का समर्थन किया. लेकिन कोर्ट ने फिलहाल कोई अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया.
वकीलों ने NPR का मुद्दा भी उठाया
सुनवाई के दौरान कुछ वकीलों ने NPR का मसला भी उठाया. कहा, "लोगों की नागरिकता सरकारी बाबुओं के भरोसे छोड़ दी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ CAA बल्कि NPR पर भी रोक लगा दे. इस पर चीफ जस्टिस ने साफ तौर पर कहा, "आप की सारी बातें सुनी जाएंगी. लेकिन हम सरकार का पक्ष सुने बिना कोई एकतरफा आदेश नहीं देंगे."
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से आग्रह किया कि वह मामले को 5 जजों की संविधान पीठ में भेज दें. सिब्बल का कहना था "हम यह समझ सकते हैं कि कोर्ट अभी कोई अंतरिम आदेश नहीं देना चाहता. लेकिन कम से कम मामले को संविधान पीठ में भेजने का आदेश तो दिया ही जा सकता है." चीफ जस्टिस ने इस बात पर सहमति जताई कि मामले में उठ रहे संवैधानिक सवालों के मद्देनजर इसकी सुनवाई संविधान पीठ में करनी होगी. लेकिन उन्होंने आज ऐसा आदेश नहीं दिया.
कोर्ट ने आज जहां सरकार को जवाब के लिए 4 हफ्ते का समय दिया, वहीं याचिकाकर्ताओं को भी सरकार के हलफनामे का जवाब देने के लिए 1 हफ्ता दिया. ऐसे में यही लगता है कि मामला शायद मार्च के पहले हफ्ते में सुनवाई के लिए लगेगा. तभी इसे संविधान पीठ में भेजने और कानून के अमल पर रोक लगाने जैसी मांगों पर फैसला लिया जाएगा.
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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार
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