बॉम्बे हाई कोर्ट ने कर दिया था जमानत देने से इनकार
बता दें कि NIA ने उन्हें ज़मानत देने का विरोध किया था. इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर दिया था. पुरोहित नौ साल के बाद अब जेल से बाहर आ सकेंगे, लेकिन उन पर मुकदमा चलता रहेगा. पुरोहित ने कोर्ट में दलील दी थी कि उन्हें और साध्वी प्रज्ञा को इस घटना में शामिल बताने वाले कई गवाह बयान बदल चुके हैं. इसी आधार पर प्रज्ञा को हाई कोर्ट ने ज़मानत दी. लेकिन उन्हें राहत नहीं दी गई.
राजनीतिक कारणों से धमाकों का आरोपी बनाया था- वकील
पिछली सुनवाई में पुरोहित की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दावा किया था कि वो सेना की इंटेलिजेंस यूनिट के लिए काम कर रहे थे. इसी मकसद से वो ब्लास्ट के आरोपी संगठन अभिनव भारत की बैठक में शामिल हुए थे, लेकिन बाद में राजनीतिक कारणों से उन्हें धमाके का आरोपी बना दिया गया.
ज़मानत पर टलता रहा था फैसला
अप्रैल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रज्ञा और पुरोहित पर महाराष्ट्र संगठित अपराध निरोधक कानून (मकोका) के तहत आरोप नहीं बनते. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत से कहा कि वो मकोका के आरोपों को अलग रख दोनों की ज़मानत अर्ज़ी पर विचार करे. हालांकि, इसके बाद भी दोनों की ज़मानत पर फैसला टलता रहा. आखिरकार प्रज्ञा को अप्रैल में ज़मानत मिल गई थी. लेकिन पुरोहित को ज़मानत नहीं मिली थी.
अप्रैल में रिहा हुईं थीं साध्वी प्रज्ञा
इसी साल अप्रैल में साल 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पांच लाख रूपये की जमानत पर सशर्त जमानत दे दी थी, लेकिन कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. साध्वी प्रज्ञा भी मालेगावं बम धमाके में आरोपी थीं.
बाइक में बम लगाकर किया गया था विस्फोट
साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित मालेगांव बम विस्फोट में आरोपी है जिसमें 6 लोगों की मौत हुई थी और तकरीबन 80 लोग जख्मी हो गए थे. 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक बाइक में बम लगाकर विस्फोट किया गया था. साध्वी और पुरोहित को 2008 में गिरफ्तार किया गया था.
क्या है पूरा मामला
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी. शुरू में महाराष्ट्र एटीएस ने मामले की जांच की. एटीएस ने अभिनव भारत नाम के संगठन पर घटना का आरोप लगाया. साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित समेत कई लोगों को एटीएस ने आरोपी बनाया था. साल 2011 में NIA को जांच सौंप दी गई.