प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है. 2020 में दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया था लेकिन अब तक केंद्र ने कोई स्टैंड नहीं लिया है. मंगलवार (11 जुलाई) को सरकार की तरफ से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने एक बार फिर समय देने का अनुरोध कर दिया. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे स्वीकार कर लिया.


आज हुई सुनवाई में वकील वृंदा ग्रोवर ने इन याचिकाओं का विरोध किया. इसके साथ ही उन्होंने देशभर में अलग-अलग धार्मिक स्थलों पर दावे को लेकर चल रहे मुकदमों पर रोक लगाने की भी मांग की लेकिन कोर्ट ने इससे मना कर दिया.


क्या है मामला?
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने की बात कहता है. इसे चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई हैं. इन याचिकाओं में इस कानून को मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया है. कहा गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदाय को अपना अधिकार मांगने से वंचित करता है.


धार्मिक-सांस्कृतिक अधिकार की दलील
सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय के अलावा बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ जैसे कई याचिकाकर्ताओं ने कानून को चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि किसी भी मसले को कोर्ट तक लेकर आना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है लेकिन 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट' नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करता है. यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्जिद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे. यह न सिर्फ न्याय पाने के मौलिक अधिकार का हनन है, बल्कि धार्मिक आधार पर भी भेदभाव है.


जमीयत भी पहुंचा है कोर्ट
सुन्नी मुस्लिम उलेमाओं का संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद भी मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. जमीयत ने कहा है कि अयोध्या विवाद के फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह कह चुका है कि बाकी मामलों में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का पालन होगा. इसलिए, अब इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए. इस तरह की सुनवाई से मुस्लिम समुदाय में डर और असुरक्षा का माहौल बनेगा. कोर्ट ने आज कहा कि सरकार का हलफनामा दाखिल होने के बाद जमीयत समेत सभी पक्ष उस पर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं.


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