SC To Hear on Karnataka Hijab: कर्नाटक हिजाब (Hijab) मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सोमवार को सुनवाई होगी. जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच के सामने कुल 24 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगाई गई हैं. याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka HC) के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन का राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया गया था.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन का राज्य सरकार का आदेश सही है. याचिकाएं मार्च में ही दाखिल हो गई थीं, लेकिन अब तक उन पर सुनवाई नहीं हुई है. सोमवार को पहली बार मामला सुप्रीम कोर्ट में लग रहा है.
क्या है मामला?
15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट फैसला दिया था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा था कि स्कूल-कॉलेजों में यूनिफॉर्म के पूरी तरह पालन का राज्य सरकार का आदेश सही है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने हिजाब को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा बता रहे छात्रों की याचिका खारिज कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मसला
हाईकोर्ट का फैसला आते ही कर्नाटक के उडुपी की रहने वाली 2 छात्राओं मनाल और निबा नाज ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इसके अलावा फातिमा बुशरा, फातिमा सिफत समेत कई और छात्राओं ने भी अपील दाखिल की. इन याचिकाओं में कहा गया कि हाईकोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को हासिल धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन करता है.
याचिका में क्या?
याचिकाओं में कहा गया है कि जिस तरह मोटर व्हीकल एक्ट के तहत सिखों को हेलमेट पहनने से छूट दी गई है. उसी तरह मुस्लिम लड़कियों को भी स्कूल कॉलेज में हिजाब पहनने से नहीं रोका जाना चाहिए. इन छात्राओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा जैसी संस्थाओं ने भी याचिका दाखिल की है.
लंबे इंतज़ार के बाद लगा मामला
मामले में याचिका दाखिल करने वाले वकीलों ने मार्च में ही चीफ जस्टिस से तुरंत सुनवाई का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि छात्राओं की पढ़ाई पर कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka HC) के फैसले का असर पड़ रहा है. हिजाब (Hijab) को अनिवार्य मानने वाली यह लड़कियां परीक्षा में भी शामिल नहीं हो पा रही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मामले को तुरंत सुनवाई के लिए लगाना जरूरी नहीं माना था. इसके बाद भी 2-3 बार सुनवाई का अनुरोध किया गया. आखिरकार, हाईकोर्ट के फैसले के 5 महीने बाद यह मामला सुनवाई के लिए लग रहा है.
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