Supreme Court Article 370: सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. इस दौरान मंगलवार 8 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि कोर्ट इस सवाल से जूझ रहा है कि क्या इसे निरस्त करना संवैधानिक रूप से वैध था या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके रहने वालों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के जरिए ही सुनिश्चित की जा सकती है.
कपिल सिब्बल ने दी थी दलील
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को ‘ब्रेक्जिट’ कहा जाता है. ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना राष्ट्रवादी उत्साह में बढ़ोतर, मुश्किल इमिग्रेशन नियमों और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के चलते हुआ. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ की ये टिप्पणी सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की उस दलील के बाद आई, जिसमें कहा गया कि संविधान के आर्टिकल 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कदम था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह से ली गई थी.
सरकार ऐसा कर सकती है या नहीं?
सिब्बल ने कहा कि जब पांच अगस्त, 2019 को आर्टिकल 370 को खत्म किया गया था, तब ऐसा नहीं था. सिब्बल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश हुए थे, जिन्होंने आर्टिकल 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती दी है. उन्होंने कहा, “संसद ने जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के प्रावधान को एकतरफा बदलने के लिए अधिनियम को अपनी मंजूरी दे दी. ये सबसे बड़ा सवाल है कि इस अदालत को ये तय करना होगा कि क्या भारत सरकार ऐसा कर सकती है.’’
सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की गैरमौजूदगी में आर्टिकल 370 को निरस्त करने की संसद की शक्ति पर बार-बार सवाल उठाया है. उन्होंने लगातार कहा है कि केवल संविधान सभा को आर्टिकल 370 को निरस्त करने या संशोधित करने की सिफारिश करने की शक्ति निहित थी और चूंकि संविधान समिति का कार्यकाल 1957 में खत्म हो गया था, इसलिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को स्थायी मान लिया गया.
सिब्बल की दलीलों पर सीजेआई ने दिया जवाब
इन याचिकाओं को सुनने वाली बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं. कपिल सिब्बल की दलीलों पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “संवैधानिक लोकतंत्र में, लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थानों के जरिए किया जाना चाहिए. आप ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते.'' उन्होंने सिब्बल के इस विचार से सहमति जताई कि ब्रेक्जिट एक राजनीतिक फैसला था, लेकिन हमारे जैसे संविधान के अंदर जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है.
(इनपुट- भाषा)