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SC Hearing On Hanging: क्या भारत में अब फांसी देकर नहीं दी जाएगी मौत की सजा? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- 'कमिटी के गठन पर हो रहा विचार'

Supreme Court On Hanging: ऋषि मल्होत्रा नाम के वकील ने फांसी को मौत की सजा देने को एक क्रूर और अमानवीय तरीका बताते हुए याचिका दाखिल की है. मौत के लिए जहर का इंजेक्शन देने का सुझाव दिया है.

Supreme Court On Hanging Punishment: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह मौत की सजा के लिए फांसी की जगह कम तकलीफदेह तरीके अपनाने की मांग पर विचार करेगी. इस पर अध्ययन के लिए एक कमिटी बनाई जा सकती है. अटॉर्नी जनरल की तरफ से दिए गए इस जवाब को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामला जुलाई के दूसरे हफ्ते में सुनवाई की बात कही. केंद्र ने यह जवाब उस याचिका पर दिया है, जिसमें फांसी को क्रूर तरीका बताया गया है और उसकी जगह जहर का इंजेक्शन देने जैसे किसी तरीके को अपनाने की पैरवी की गई है.

इससे पहले 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या फांसी की प्रक्रिया तकलीफदेह है और क्या आधुनिक वैज्ञानिक तरीके उपलब्ध हैं, जो इससे बेहतर हो सकते हैं? चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने अटॉर्नी जनरल से 2 मई तक जवाब देने के लिए कहा था. आज अटॉर्नी जनरल के जवाब से उत्साहित याचिकाकर्ता ने जजों को बताया कि अमेरिका के 50 राज्यों में से 35 ने मौत की सजा के लिए जहर का इंजेक्शन देने का कानून बना दिया है. वहां के सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने भी बहुमत से इसे सही तरीका बताया है. 

क्या है मामला?
To be hanged till death यानी जब तक मौत न हो जाए, तब तक फांसी पर लटकाया जाए. मौत की सजा का फैसला देते वक्त जज यही बोलते हैं. ऋषि मल्होत्रा नाम के वकील ने इसे एक क्रूर और अमानवीय तरीका बताते हुए याचिका दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि फांसी की पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी है. मौत सुनिश्चित करने के लिए फांसी के बाद भी सजा पाने वाले को आधे घंटे तक लटकाए रखा जाता है. याचिका में कहा गया है कि दुनिया के कई देशों ने फांसी का इस्तेमाल बंद कर दिया है. भारत में भी ऐसा होना चाहिए. याचिकाकर्ता ने मौत के लिए इंजेक्शन देने, गोली मारने या इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल करने जैसे तरीके अपनाने का सुझाव दिया है.

अब तक की सुनवाई में क्या हुआ है?
ऋषि मल्होत्रा ने 21 मार्च को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली बेंच में दलील रखते हुए पुराने फैसलों का हवाला दिया था. उन्होंने कहा था कि 1983 में दीना बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी को सही तरीका बताया था. लेकिन अब उस बात को काफी समय बीत चुका है. 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने ही ज्ञान कौर बनाम पंजाब मामले में शांति और सम्मान से मरने को भी जीवन के अधिकार का हिस्सा माना था. फांसी की सजा में इसका उल्लंघन होता है.

उन्होंने बताया था कि लॉ कमीशन भी अपनी रिपोर्ट में CrPC की धारा 354(5) में संशोधन की सिफारिश कर चुका है. लेकिन सरकार ने इस पर अमल नहीं किया. गौरतलब है कि CrPC की इसी धारा में मरने तक फांसी पर लटकाए रखने की सजा का प्रावधान है.

केंद्र ने पहले फांसी को बताया था बेहतर
2017 में दाखिल इस याचिका पर केंद्र सरकार ने 2018 में जवाब दाखिल किया था. उस जवाब में केंद्र ने मौत की सजा के लिए फांसी को सबसे बेहतर तरीका बताया था. केंद्र ने कहा था कि फांसी मौत के दूसरे तरीकों से ज्यादा भरोसेमंद और कम तकलीफदेह है. सरकार ने यह भी कहा था कि जहर के इंजेक्शन से कई बार मौत में देरी होती है. जबकि गोली मार कर जान लेना भी एक क्रूर तरीका है. तीनों सेनाओं में इस तरीके की इजाजत है, लेकिन वहां भी ज्यादातर फांसी के जरिए ही मौत की सजा दी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट का सवाल
पिछली सुनवाई में केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी का रुख पुराने हलफनामे से अलग रहा. उन्होंने कहा कि याचिका में रखी गई बातों पर विचार किया जा सकता है. इसके बाद जजों ने अटॉर्नी जनरल से इस बात पर जवाब देने को कहा था कि क्या किसी फांसी के दौरान और उसके बाद के घटनाक्रम पर अधिकारी और डॉक्टर जो रिपोर्ट सरकार को देते हैं, उसमें कभी यह कहा गया है कि सजा पाने वाले को तकलीफ हुई? क्या अब उससे बेहतर तरीके उपलब्ध हैं? सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि वह इस पर आगे विचार करने के लिए नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक कमिटी का गठन कर सकता है.

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