Electoral Bond: चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को धन उपलब्ध कराने की इजाजत देने वाले कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. कोर्ट ये सुनवाई शुक्रवार 14 अक्टूबर, 2022 को करेगा. इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दते हुए याचिकाएं डाली गई थीं. आपको बता दें कि चुनाव में मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉन्ड की शुरूआत की गई है. इसके तहत राजनीतिक दलों मिलने वाली नकद राशि के विकल्प में बॉन्ड में राशि दी जा सकती है.


जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ-साथ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई करेगी. इन याचिकाओं में राजनीति पार्टियों की फंडिंग के सोर्स के रूप में केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना की बैधता को चुनौती दी गई है.


एनजीओ की ओर से प्रशांत भूषण ने उठाया मामला


एनजीओ की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने 5 अप्रैल 2021 को इस मामले को उठाया था. उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण के सामने इस मामले को रखा था. प्रशांत ने उस वक्त कहा था कि ये बेहद ही गंभीर मामला है और इस पर तत्काल प्रभाव से चुनवाई होनी चाहिए. उस वक्त अदालत ने मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति तो जता दी थी लेकिन इस सूचीबद्ध अब तक नहीं किया गया था. ये मामला 18 महीने से ज्यादा वक्त के बाद सूचीबद्ध किया गया है.


क्या है चुनावी बॉन्ड स्कीम?


चुनावी बॉन्ड स्कीम को 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था. इस स्कीम के प्रावधानों के मुताबिक, इसके सिर्फ वही इंसान खरीद सकता है जो भारत का नागरिक हो और यहीं रहता भी हो. इसके अलावा, जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी ही चुनावी बॉन्ड के जरिये चंदा ले सकती है लेकिन इसके लिए एक शर्त है. वो शर्त ये है कि पार्टी को चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट जरूर मिला हो. साथ ही पार्टी को किसी आधिकारिक बैंक खाते के जरिए ही बॉन्ड का भुगतान किया जा सकता है.


इस बॉन्ड को बिना किसी अधिकतम सीमा के रूप में जारी किया जा सकता है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इस बॉन्ड को भुनाने के लिए ऑफिशियल बैंक है. साथ ही ये बॉन्ड जारी करने के 15 दिनों तक ही बैध रहते हैं. इन बॉन्ड को खरीदने के लिए बैंक को ड्राफ्ट या चेक के जरिए भुगतान करना होता है.


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