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'लोगों का कल्याण ज़रूरी, लेकिन अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान पर भी करें विचार'- सुप्रीम कोर्ट

SC on Freebies: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने संकेत दिया कि मुफ्त की घोषणाओं के नीति निदेशक तत्वों के मुताबिक होने से जुड़े आदेश की समीक्षा कर उसमें सुधार किया जा सकता है.

Supreme Court on Freebies: चुनाव के दौरान मुफ्त योजनाओं (Freebies) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज अहम सुनवाई हुई. 26 अगस्त को रिटायर होने जा रहे चीफ जस्टिस एन वी रमना (NV Ramana) ने आज संकेत दिए कि वह इससे पहले चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की घोषणा से जुड़े मामले पर कुछ आदेश देना चाहते हैं. चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान सभी पक्षों से कहा कि वह उनके रिटायरमेंट से पहले ठोस सुझाव कोर्ट के सामने रखें. 

आज तीन जजों की बीच की सदस्य जस्टिस हिमा कोहली के उपलब्ध न होने के चलते कोई आदेश पारित करना कोर्ट के लिए संभव नहीं था. मामले को 17 अगस्त को अगली सुनवाई के लिए लगाया गया है.

कोर्ट बनाना चाहता है कमिटी

पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस (CJI) ने योजनाओं से अर्थव्यवस्था (Economy) को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई. उन्होंने कहा था कि कल्याण और अर्थव्यवस्था के नुकसान के बीच संतुलन बनाने के लिए एक विशेषज्ञ कमिटी बनाई जानी चाहिए. कोर्ट ने सभी पक्षों से कमेटी के सदस्यों पर सुझाव मांगे. 

चुनाव आयोग का जवाब

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की थी कि अगर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों की की तरफ से बिना सोचे समझे की जाने वाली घोषणाओं पर लगाम लगाई होती, तो आज यह नौबत नहीं आती. चुनाव आयोग ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने फैसले में चुनाव घोषणा पत्र में लोगों के हित के लिए योजनाओं के ऐलान को संविधान में दिए गए नीति निर्देशक तत्व के मुताबिक बताया था. कोर्ट के इस आदेश से चुनाव आयोग के हाथ बंधे हैं. 

आयोग ने यह भी कहा कि उसके बारे में की गई कोर्ट की तरफ से की गई टिप्पणी से उसकी छवि को नुकसान पहुंचा है. जजों ने आज संकेत दिया कि मुफ्त की घोषणाओं के नीति निदेशक तत्वों के मुताबिक होने से जुड़े आदेश की समीक्षा कर उसमें सुधार किया जा सकता है. इसके साथ ही जजों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि सुप्रीम कोर्ट में मामला सुने जाने से पहले ही चुनाव आयोग का हलफनामा मीडिया में प्रकाशित हो गया.

आयोग को मिले मान्यता रद्द करने का अधिकार

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के लिए पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि राजनीतिक दलों को मान्यता देने वाले चुनाव आयोग को यह शक्ति दी जानी चाहिए कि वह मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करने पर पार्टी की मान्यता रद्द करे. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कानून बनाना कोर्ट का काम नहीं है. चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि पार्टी की मान्यता ही रद्द कर देना एक अलोकतांत्रिक विचार है. बेहतर हो कि मामले में अनुभव और जानकारी रखने वाले सभी पक्ष एक साथ बैठकर देश के हित में कुछ अच्छा फैसला लें.

केंद्र ने फैसले की ज़रूरत बताई

इस मामले में केंद्र सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "जब हम सड़क पर चलते हैं तो पता चलता है कि सरकार क्या कर रही है. कुछ लोगों के लिए अलग से योजना बनाना भी सही है, लेकिन अब यह सर्वव्यापी होता जा रहा है. मैंने भी कमिटी के गठन पर सुझाव दिए हैं. इसमें अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी रखे जाएं, जो संकट में हैं. मामले में वरिष्ठ वकील की हैसियत से कोर्ट की सहायता कर रहे कपिल सिब्बल ने कहा कि बिना आंकड़ों को जुटाए कुछ भी कह पाना संभव नहीं है. कोर्ट के सामने ऐसे आंकड़े आने चाहिए, जिनसे यह पता चल सके कि अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र को कितनी सहायता की जरूरत है.

'आप' ने किया विरोध

मामले में दखल देने के लिए आवेदन दाखिल करने वाली आम आदमी पार्टी की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने मामले में चल रही सुनवाई और कमिटी के गठन के विचार को गैरजरूरी बताया. सिंघवी ने कहा कि चुनाव के दौरान घोषणा करना पार्टियों का अधिकार है. इसे बहुत सोच समझ कर किया जाता है. भारत में कल्याणकारी सरकार की अवधारणा है. उसके मुताबिक ही यह घोषणा की जाती है.

चीफ जस्टिस ने दिए उदाहरण 

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने खुद से जुड़े कुछ उदाहरण भी कोर्ट में रखे. उन्होंने कहा, "मेरे ससुर एक अनुशासित किसान थे. किसानों को उन दिनों किसानों को बिजली का कनेक्शन नहीं मिल पाता था. उन्होंने मुझसे इस बारे में याचिका दाखिल करने को कहा. मैंने उन्हें बताया कि यह सरकार की नीति है. इस पर कुछ नहीं कर सकते. लेकिन कुछ दिनों बाद सरकार ने अवैध तरीके से कनेक्शन जोड़ने वाले सभी किसानों के कनेक्शन वैध कर दिए. मेरे पास अपने ससुर को देने के लिए कोई जवाब नहीं था''.

चुनाव में मुफ्त योजनाओं (Free Schemes) पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) एन वी रमना (NV Ramana) ने आगे कहा कि मुझे जहां मकान आवंटित हुआ था, उसमें मैं एक ईंट भी अपनी तरफ से नहीं जोड़ सकता था, लेकिन मेरे अगल-बगल रह रहे लोगों ने कई फ्लोर बना लिए. बाद में पता चला कि सरकार ने सभी अवैध निर्माण को नियमित कर दिया.

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