Kanwar Yatra: 'जल्द हो सुनवाई, नहीं तो पूरी हो जाएगी यात्रा', कांवड़ नेमप्लेट विवाद पर बोली यूपी सरकार, SC से नहीं मिली राहत
Kanwar Yatra Controversy: कांवड़ यात्रा मार्ग पर मौजूद दुकानों के बाहर मालिकों के नाम की नेमप्लेट लगाने को लेकर काफी ज्यादा विवाद देखने को मिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस आदेश पर रोक लगाई है.
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Kanwar Yatra Nameplate Controversy: कांवड़ यात्रा मार्गों पर दुकानों के बाहर नेमप्लेट लगाने के निर्देश मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. देश की शीर्ष अदालत में यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार (26 जुलाई) को सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने यूपी सरकार के नेमप्लेट लगाने के निर्देश पर रोक लगाने का फैसला बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगभग तीन हफ्ते के लिए टल गई है.
इस तरह से ये साफ हो गया है कि इस साल की कांवड़ यात्रा के दौरान सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा. अब कोर्ट भविष्य के लिए ही कोई आदेश देगा. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही नेमप्लेट लगाने के निर्देश पर रोक लगा चुका है, जो अभी जारी रहने वाला है.
अभी दुकानदारों के लिए अपना नाम लिखने की कोई अनिवार्यता नहीं होगी. हालांकि अदालत ने साफ किया है कि जो दुकानदार अपना नाम लिखना चाहते हैं, वह लिख सकते हैं. कोर्ट ने सभी पक्षों को जवाब के लिए समय दिया है. तीन सप्ताह बाद आगे सुनवाई होगी.
सिर्फ यूपी सरकार ने दाखिल किया जवाब
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि सिर्फ अभी तक यूपी सरकार ने जवाब दाखिल किया है. उत्तराखंड सरकार की तरफ से समय मांगा गया है. अदालत ने पूछा कि मध्य प्रदेश की तरफ से कौन है. एमपी के वकील ने कहा कि हम भी जवाब दाखिल करेंगे, लेकिन हमारे यहां कोई घटना नहीं हुई है. उज्जैन नगरपालिका ने कोई आदेश भी नहीं पारित किया है. दिल्ली के वकील ने कहा कि हमने कांवड़ मार्गों पर नेमप्लेट लगाने को लेकर कोई आदेश पारित नहीं किया है.
यूपी सरकार ने की जल्द सुनवाई की मांग, फिर मिला ये जवाब
अदालत को बताया गया कि कांवड़ियों के एक समूह की तरफ से भी एक आवेदन दाखिल हुआ है. यूपी की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर एकतरफा रोक लगा दी गई है. इस मामले पर जल्द सुनवाई होनी चाहिए, नहीं तो यात्रा पूरी हो जाएगी.
इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 60 साल से यह आदेश नहीं आया था. अगर इस साल लागू नहीं हो पाया तो कुछ नहीं बिगड़ जाएगा. कोर्ट विस्तार से सुन कर फैसला करे. इस पर रोहतगी ने बताया कि केंद्रीय कानून है कि रेस्टोरेंट मालिक नाम लिखें. इसे तो पूरे देश में लागू होना चाहिए.
कानून के आधार पर जारी किया था फैसला: उत्तराखंड सरकार
सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए उत्तराखंड के वकील ने कहा कि हमने कानूनी आधार पर ही निर्देश जारी किया. इस बारे में हमारे अपने नियम हैं. सिर्फ यात्रा की ही बात नहीं है. अगर रजिस्टर्ड विक्रेताओं के बीच मे कोई गैर रजिस्टर्ड आकर खड़ा हो जाए तो लोग कैसे जान पाएंगे. मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोर्ट का आदेश केंद्रीय कानून से उलट है. इस पर जज ने कहा कि हम कानून पर सुनवाई करेंगे. रोहतगी ने कहा कि ये जल्द होना चाहिए.
अगर दुकानदार के अधिकार तो हमारे भी धार्मिक अधिकार: कांवड़ियों के वकील
कांवड़ियों के एक समूह की तरफ से भी एक आवेदन दाखिल हुआ है कांवड़ियों के वकील ने कहा कि हमें सात्विक खाना चाहिए, जो बिना प्याज-लहसुन के हो. मान लीजिए कि हम माता दुर्गा ढाबा नाम पढ़ कर घुस जाते हैं और पता चलता है कि वहां मालिक और स्टाफ अलग लोग हैं तो समस्या होती है. उनके अधिकार हैं तो हमारे भी धार्मिक अधिकार हैं.
जवाब में जज ने कहा कि हमने सिर्फ कहा कि दुकानदार का नाम लिखने को बाध्य न किया जाए. अगर कोई लिखना चाहता है तो कोई रोक नहीं है. जिसे पढ़ना है, पढ़ कर जाए. इसके जवाब में उत्तराखंड के वकील ने कहा कि जब कानून में अनिवार्यता है तो उसका पालन होना चाहिए. कांवड़ यात्रियों के एक और वकील ने कहा कि हम कई टन पानी लाद कर चल रहे होते हैं. नाम प्रदर्शित होना जरूरी है ताकि पढ़ा जा सके. सुप्रीम कोर्ट में बताया गया कि यूपी ने कल रात जवाब दाखिल किया है, जो रिकॉर्ड पर नहीं है. उत्तराखंड और एमपी भी जवाब दाखिल करना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा
अभी तक मिली जानकारी के हिसाब से जवाब दाखिल करने के लिए उत्तराखंड और एमपी को एक सप्ताह का समय मिला है. इसके बाद याचिकाकर्ता दो सप्ताह में जवाब देंगे. सबका जवाब आने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट सुनवाई होगी, यानी 19 अगस्त को अगली सुनवाई हो सकती है. लिखित आदेश आने के बाद ज्यादा स्पष्टता मिल सकेगी. फिलहाल इस साल की कांवड़ यात्रा के दौरान सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा. कोर्ट ने साफ किया है कि जो दुकानदार नाम लिखना चाहते हैं, वह लिख सकते हैं. जो यात्री उसे पढ़ कर ही जाना चाहते हैं, वह वहां जाएं.
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