अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मध्यस्थ के नाम पर सुझाव मांगे, करीब एक घंटे चली बहस
अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में मध्यस्थता पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सिर्फ पक्षों का विवाद नहीं है. दोनों तरफ करोड़ों लोग हैं. मध्यस्थता में जो निकलेगा, वो सबको मान्य कैसे होगा.
नई दिल्ली: अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में मध्यस्थता हो या नहीं इसपर आज सुप्रीम कोर्ट में करीब एक घंटे तक सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मध्यस्थता करने वालों के नाम मांगे. सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. यूपी सरकार ने भी इसे अव्यवहारिक बताया. मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में है.
सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा की दलील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोबडे ने कहा कि जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता. बस विकल्प आजमाना चाहता है. हम ये नहीं सोच रहे कि कोई किसी चीज का त्याग करेगा. हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है, हम इसके असर के बारे में जानते हैं.
बोबडे ने कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है? कोर्ट ने कहा अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है पर हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं.
वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सिर्फ पक्षों का विवाद नहीं है. दोनों तरफ करोड़ों लोग हैं. मध्यस्थता में जो निकलेगा, वो सबको मान्य कैसे होगा. जिसपर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि आप आदेश दे देंगे तो सब मानेंगे. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि हम चाहते हैं मध्यस्थता बंद कमरे में हो. बातें लीक न हों. हम मध्यस्थता के लिए जाने को तैयार हैं. निर्मोही अखाड़ा भी तैयार है.
फिर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मध्यस्थता के लिए ज़रूरी है कि समझौता सबको मान्य हो. मामला करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है. वहीं जस्टिस बोबडे ने कहा कि मुकदमा समुदाय के प्रतिनिधि लड़ रहे हैं.
उसके बाद हिंदू पक्ष के हरिशंकर जैन ने कहा कि कोर्ट मध्यस्थता से पहले सभी पक्षों की बात सुनें, ये नियम है. इसी दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा कि अगर हम भूमि विवाद पर डिग्री (फैसला) दें तो क्या वो सबको मान्य हो जाएगा?
जिसपर वकील और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अयोध्या एक्ट से वहां की सारी ज़मीन का राष्ट्रीयकरण हो चुका है. नरसिंह राव सरकार कोर्ट में वचन दे चुकी है कि कभी भी वहां मंदिर का सबूत मिला तो जगह हिंदुओं को दे दी जाएगी. कोर्ट ने इसे अपने फैसले में दर्ज किया था. वहां सुलह करने जैसा कुछ नहीं.
रामलला विराजमान के वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मध्यस्थता के पहले बहुत प्रयास हुए. अयोध्या रामजन्मभूमि है, इस पर कोई सुलह मुमकिन नहीं है. सरकार देख ले कि मस्ज़िद के लिए कहां जगह दी जा सकती है. समझौते का इकलौता बिंदु यही हो सकता है. मध्यस्थता पर जाने की कोई जरूरत नहीं है.
हिन्दू महासभा मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है, ये राम जन्मभूमि का मसला है और यह कोई ज़मीन का विवाद नहीं है. किसी को भी सुलह कर लेने का अधिकार नहीं है. हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बाबर के जिक्र पर कहा कि बाबर ने क्या किया और उसके बाद क्या हुआ, हमें इससे मतलब नहीं है. मौजूदा समय में जो हो रहा है, हम विचार कर सकते हैं.
दरअसल, पिछले हफ्ते अयोध्या मामले की सुनवाई यूपी सरकार की तरफ से कराए गए दस्तावेजों के अनुवाद पर विवाद के चलते अटक गई थी. मुस्लिम पक्ष ने मांग की थी कि वो दस्तावेजों को देखकर बताएगा कि अनुवाद सही है या नहीं. कोर्ट ने इसकी इजाज़त देते हुए सुनवाई टाल दी थी. इसी दौरान बेंच के सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था, "हम मध्यस्थता पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. अगर मामले से जुड़े पक्षों के साथ बैठने से समाधान की एक फीसदी भी गुंजाइश है, तो ऐसा ज़रूर होना चाहिए."
बेंच के इस सुझाव पर मामले के मुख्य पक्षकारों में से एक, निर्मोही अखाड़ा ने सहमति जताई थी. मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने भी कहा था कि अगर बंद कमरे में गंभीरता से चर्चा हो, इस दौरान हुई बातों को मीडिया में लीक न किया जाए तो हो सकता है कि कुछ नतीजे निकलें. हालांकि, रामलला विराजमान पक्ष की तरफ से मध्यस्थता को बेकार की कोशिश कहा गया था.
शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में चार दिवानी मुकदमों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बांट दी जाये.