Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्रीय पुत्र घोषित करने की याचिका खारिज, PIL डालने वाले से कही ये बड़ी बात
Supreme Court: पीआईएल डालने वाले ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को मान्यता देने में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाया था. ये भी कहा था कि कांग्रेस ने बोस की मौत से जुड़ी फाइलों को छिपाकर रखा है.
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Supreme Court on Netaji Subhas Chandra Bose: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (5 जनवरी) को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता "अमर" हैं और उन्हें न्यायिक आदेश के माध्यम से मान्यता देने की जरूरत नहीं है.
इस याचिका में बोस को "राष्ट्र पुत्र" घोषित करने का निर्देश देने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को कथित तौर पर कमतर करने व उनके लापता होने या मृत्यु के बारे में सच्चाई न बताने के लिए कांग्रेस से माफ़ी की मांग की गई थी.
'कोर्ट का आदेश देना नेताजी के कद के अनुकूल नहीं'
न्यायाधीश सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “देश के स्वतंत्रता संग्राम में बोस की भूमिका को स्वीकार करने की घोषणा के लिए न्यायिक आदेश अनुचित होगा, क्योंकि यह उनके जैसे नेताजी के कद के अनुकूल नहीं है कि उन्हें अदालत से मान्यता की जरूरत हो. नेताजी जैसे नेता को कौन नहीं जानता? देश में हर कोई उन्हें और उनके योगदान को जानता है. उनके जैसे नेता अमर हैं.”
जनहित याचिका में कांग्रेस पर उठाए गए थे सवाल
बता दें कि यह जनहित याचिका कटक स्थित पिनाक पानी मोहंती ने दायर की थी. उन्होंने अदालत से यह घोषणा करने की मांग की थी कि बोस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिंद फौज) ने ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल की है. इस याचिका में बोस के योगदान को मान्यता देने में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाया गया था, साथ ही कहा गया था कि कांग्रेस ने बोस के लापता होने/मृत्यु से जुड़ी फाइलों को छिपाकर रखा है. याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को बोस के जन्मदिन 23 जनवरी को "राष्ट्रीय दिवस" और नेताजी को "राष्ट्र पुत्र" घोषित करना चाहिए.
अदालत ने कहा, आपको ऐसे मुद्दे नहीं उठाने चाहिए
पीठ ने 1997 के फैसले का हवाला देते हुए मोहंती से कहा कि “आपको बोस के लापता होने या मौत से जुड़े मुद्दे नहीं उठाने चाहिए. यह सब इस अदालत द्वारा 1997 में पहले ही निपटाया जा चुका है. आपको ऐसे मुद्दों को यहां उठाने से पहले उस फैसले को पढ़ना चाहिए था. यदि आप चाहते हैं कि सरकार कुछ करे, तो आपको उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए.”
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