Places Of Worship Act के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई, जानें कोर्ट ने क्या कहा
Supreme Court On Places Of Worship Act: याचिका में कहा गया कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान मनमाने और गैर संवैधानिक हैं. ये प्रावधान संविधान का उल्लंघन करता है.
Supreme Court: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places Of Worship Act) के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले सभी नए याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहल से दाखिल दो याचिकाओं में अपना आवेदन दाखिल करें, कोई नई याचिका न डालें. कोर्ट ने दो याचिकाओं को पहले ही स्वीकार कर लिया है. कोर्ट ने कहा कि नई याचिकाओं की बजाय उन्हीं याचिकाओं में आवेदन दाखिल करें. इस मामले की मुख्य सुनवाई 9 सितंबर को होनी है. अभी तक सरकार की तरफ से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है.
फिलहाल कोर्ट ने इन 6 याचिकाओं वाले मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य मामले में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने की इजाजत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला पहले लंबित है और नोटिस जारी किया जा चुका है ऐसे में याचिकाओं को वापस लेकर हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करें. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कुल 6 याचिकाओं पर सुनवाई की है. हालांकि, इस मुद्दे पर कुल 9 याचिकाएं कोर्ट में डाली गई हैं.
क्या कहा गया याचिकाओं में?
इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून संविधान द्वारा दिए गए न्यायिक समीक्षा के अधिकार पर रोक लगाता है. कानून के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत दिए गए अदालत जाने के मौलिक अधिकार के चलते निष्प्रभावी हो जाते हैं. ये एक्ट समानता, जाने का अधिकार और पूजा के अधिकार का हनन करता है.
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
इस कानून को साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) की कांग्रेस (Congress) सरकार के दौरान बनाया गया था. इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म (Religion) के उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता है. इस कानून में कहा गया है कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है. इस कानून (Law) के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा.