Supreme Court: गरीब सवर्णों के आरक्षण से जुड़े तीन पहलूओं पर जल्द आ सकता है फैसला, सुप्रीम कोर्ट में आज से विस्तृत सुनवाई
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज से सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने कहा है कि अगर किसी पक्ष के पास कोई नई दलील हो, तो वह उसे रख सकता है.
Reservation For Economically Weak In General Category: सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज से सुनवाई शुरू करेगी. पिछले हफ्ते कोर्ट ने सुनवाई के मुख्य बिंदु तय कर दिए थे. मामले में एनजीओ जनहित अभियान समेत 30 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का रुख किया है. इन याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए जाने को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय 50 फीसदी तक ही आरक्षण की सीमा के उल्लंघन का भी हवाला दिया गया है.
चीफ जस्टिस की अगुवाई में 5 न्यायाधीश की पीठ करेगी चर्चा
सुप्रीम कोर्ट में उच्च शिक्षा और जनता के मुद्दों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण की संवैधानिक वैधता से संबंधित मामले में भी आज से बहस शुरू होगी. आर्थिक स्थिति के आधार पर रोजगार के मामले पर भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी. 103वें संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता, जिसने राज्य को केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में आरक्षण करने में सक्षम बनाया, मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में 5 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा जांच की जाने वाली पहली बात होगी.
सुनवाई के दौरान इन 3 बिंदुओं पर होगी चर्चा:-
- क्या 103वां संविधान संशोधन इस आधार पर संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है कि उसके तहत सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण की शक्ति मिली?
- क्या 103वां संशोधन इस आधार पर मूल ढांचे का उल्लंघन करता है कि इससे सरकार को गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में दाखिले को लेकर नियम बनाने की शक्ति देता है?
- क्या 103वां संशोधन इस आधार पर मूल ढांचे का उल्लंघन है कि गरीब वर्ग के आरक्षण में ओबीसी, SC, ST को शामिल नहीं किया गया है?
चीफ जस्टिस ने दी अलग दलील वाले को पक्ष रखने की अनुमति
चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने कहा है कि इन बिंदुओं से अलग भी अगर किसी पक्ष के पास कोई दलील हो, तो वह उसे रख सकता है. चीफ जस्टिस के अलावा बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रविंद्र भाट, बेला एम त्रिवेदी और जमशेद बी. पारडीवाला.
2019 से पेंडिंग है मामला
5 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपा था. इस मामले में एनजीओ जनहित अभियान समेत 30 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का रुख किया. इन याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए जाने को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय 50 फीसदी तक ही आरक्षण की सीमा के उल्लंघन का भी हवाला दिया गया है. इन याचिकाओं में कहा गया है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है. सरकार ने बिना ज़रूरी आंकड़े जुटाए आरक्षण का कानून बना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित रखने का फैसला दिया था, इस प्रावधान के ज़रिए उसका भी हनन किया गया है.
क्या है केंद्र सरकार की दलील
जनवरी 2019 में केंद्र सरकार ने संसद में 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित करवा कर आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था बनाई थी. मामले में पहले हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने इस आरक्षण का यह कहते हुए बचाव किया था कि :-
- कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत रखना कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं, सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का फैसला है.
- तमिलनाडु में 68 फीसदी आरक्षण है. इसे हाई कोर्ट ने मंजूरी दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक नहीं लगाई.
- आरक्षण का कानून बनाने से पहले संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में ज़रूरी संशोधन किए गए थे.
- आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था ज़रूरी है.
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