Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, याचिकाकर्ता ने बताया क्यों मायने रखता है ये केस
समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू होने वाली है. याचिकाकर्ताओं में से एक सुप्रियो चक्रवर्ती ने एबीपी लाइव को बताया कि समलैंगिक लोगों के लिए केस क्यों मायने रखता है.
Same-Sex Marriage Case Hearing: समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक बेंच मंगलवार (18 अप्रैल) से सुनवाई शुरू करेगी. केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर सवाल उठाए गए हैं. LGBTQ+ समुदाय के लगभग 20 याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से हिंदू विवाह अधिनियम सहित विभिन्न विवाह अधिनियमों के तहत उनकी शादी को मान्यता देने के लिए कहा है.
याचिकाकर्ताओं में से एक, हैदराबाद के एक जोड़े ने अपनी दलील में कहा कि समलैंगिक विवाहों की गैर-मान्यता समानता के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग, जो 10 साल से अधिक समय से साथ हैं, ने अदालत से विशेष विवाह अधिनियम के तहत उनकी शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की है. उन्होंने अदालत से LGBTQ+ समुदाय को शादी का अधिकार देने की मांग की है.
याचिका दायर करने के लिए कैसे प्रेरित हुए?
सुप्रियो चक्रवर्ती ने उन कारणों का जिक्र किया जिन्होंने उन्हें याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने एबीपी लाइव से कहा कि मैं वास्तव में चाहता हूं कि मेरी मां अभय को अपने दामाद के रूप में कानूनी रूप से, गर्व से आपनाए. उन्होंने उम्मीद जताई कि ये देश में समलैंगिक समुदाय के लिए अधिकारों के एक नए सेट का मार्ग प्रशस्त करेगा. सुप्रियो ने कहा कि हर किसी को इसके बारे में सोचना चाहिए. ये यहां मानवता के बारे में एक सवाल है.
कोलकाता में जन्मे और पले-बढ़े, 33 वर्षीय सुप्रियो 2021 में अभय से एक डेटिंग ऐप के माध्यम से मिले थे. अभय के साथ अपने 10 साल से अधिक लंबे रिश्ते के बारे में सुप्रियो ने कहा कि प्यार में पड़ना एक लंबी प्रक्रिया है. अगर आप मुझसे तारीख या समय पूछेंगे तो मैं आपको नहीं बता पाऊंगा. हम वास्तव में एक साथ बड़े हुए हैं और अभी भी एक-दूसरे के प्यार में पड़ रहे हैं, हर दिन, हर पल.
"अच्छे के लिए बदलाव लाएगा"
इस जोड़े ने 18 दिसंबर, 2021 को अपने करीबी और दोस्तों के सामने शादी समारोह आयोजित करने का फैसला किया था. न केवल भारत में बल्कि एशिया में भी मील का पत्थर बनने की क्षमता रखने वाले मामले के याचिकाकर्ता को न्याय व्यवस्था और युवा पीढ़ी से बहुत उम्मीद है. सुप्रियो ने कहा कि मुझे दृढ़ विश्वास है कि यह बेहतर अच्छे के लिए बदलाव लाएगा. हमें आगे बढ़ना चाहिए. अब जागरूकता अधिक है.
विवाह के साथ, विरासत के अधिकार, बीमा नामांकन, चिकित्सा निर्णय और बच्चे को गोद लेने के अधिकार आते हैं. बच्चा गोद लेना इस मामले का एक मूलभूत हिस्सा बन गया है क्योंकि इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक ने अदालत से कहा है कि वे बच्चों की परवरिश कर रहे हैं. कानून समान-लिंग संघों को मान्यता नहीं देता है. किशोर न्याय अधिनियम के तहत, एकल व्यक्ति या एक स्थिर वैवाहिक संबंध में जोड़े बच्चे को गोद ले सकते हैं.
केंद्र सरकार का क्या कहना?
इस मामले में सरकार ने भी गोद लेने को विरोध का कारण बताया है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा था कि अगर ऐसी शादी को मान्यता मिलेगी तो भविष्य में समलैंगिक जोड़े बच्चों को गोद लेंगे. इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि समलैंगिक जोड़े के साथ रह रहे बच्चे की मानसिक स्थिति पर इसका किस तरह का असर पड़ेगा.
कई बाहरी हितधारकों ने इस संबंध में अपने विचार जाहिर किए हैं, जिनमें पूर्व न्यायाधीशों का एक समूह, जमीयत उलेमा-ए-हिंद नामक एक मुस्लिम संगठन और यहां तक कि दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) भी शामिल है, जो एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के बच्चों के गोद लेने के अधिकारों का समर्थन करता है.
2018 के फैसले का किया जिक्र
सुप्रियो ने कहा कि 2018 के फैसले के बाद बहुत कुछ बदल गया है, उन्होंने नवतेज सिंह जौहर के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि समलैंगिक यौन संबंध सहित वयस्कों के बीच सभी सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 सितंबर, 2018 को कहा कि एक निजी स्थान पर वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध अपराध नहीं है.
"न्यायिक प्रणाली में विश्वास"
उन्होंने कहा कि अगर मैं इस मामले के बारे में बात करता हूं, तो मुझे व्यक्तिगत रूप से हमारी न्यायिक प्रणाली में बहुत उम्मीद और विश्वास है, क्योंकि यही समय है, हमें आगे बढ़ने की जरूरत है. पहला कदम निश्चित रूप से डिक्रिमिनलाइजेशन था और अगला कदम विवाह अधिकार है. हमारा देश बहुत उदार है, लोग हमेशा सब कुछ अपनाते हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से इस देश और उस तरह की युवा पीढ़ी के लिए बहुत आशान्वित हूं.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘‘शहरी संभ्रांतवादी’’ विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए. केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता ‘पर्सनल लॉ’ और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी. पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगी.
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