Supreme Court Hearing On Places of Worship Act 1991: सुप्रीम कोर्ट में आज 5 अप्रैल प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Places of Worship Act 1991) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई होनी है. इससे जुड़ी याचिकाओं में कहा गया, लोगों की समानता, जीने के अधिकार और व्यक्ति की निजी आजादी के आधार पर पूजा के अधिकार का हनन करता है.


दरअसल, 9 सितंबर 2022 को इससे जुड़ी याचिकाओं को तीन जजों की पीठ के सामने रखा गया था. वहीं, आज इन सभी याचिकाओं पर होने वाली सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सिंह, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेपी पादरीवाला करेगी. वहीं, इस मामले पर कोर्ट के फैसले से देश में आगे की राजनीतिक और धार्मिक विवादों की दिशा तय हो सकती है. तीन जजों की पीठ इस एक्ट की संवैधानिकता और वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर भी सुनवाई करेगा. 


सुप्रीम कोर्ट ने कई बार केंद्र से मांगा जवाब


प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार केंद्र से जवाब मांगा है. अदालत ने साल 2021 मार्च महीने में नोटिस जारी किया था जिसके बाद सितंबर महीने में जवाब मांगा. हालांकि, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने समय मांगा था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया था.


प्रावधानों को लेकर कुल 6 याचिकाएं


सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों को लेकर कुल 6 याचिकाएं लगाई गई हैं. पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, भारतीय जनता पार्टी के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय, विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की याचिकाएं भी इनमें शामिल हैं.


क्या कहता एक्ट


दरअसल, एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जितने भी धार्मिक स्थल हैं उनकी यथास्थिति बनी रही फिर चाहे वो मस्जिद हो, मंदिर हो, चर्च हो या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल. कोई भी अदालत या सरकार इसे बदल नहीं सकती.


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