Supreme Court: एक साथ 3 तलाक को रद्द करने के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अब मुस्लिम समाज मे प्रचलित निकाह हलाला और बहुविवाह पर जैसी व्यवस्थाओं पर भी सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि मामले को दशहरा के छुट्टियों के बाद सुना जाएगा. इस लिहाज़ से यह सुनवाई 11 अक्टूबर से शुरू होने की उम्मीद है.


अल्पसंख्यक आयोग को भी पार्टी बनाया
बता दें कि 26 मार्च 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. बेंच ने संविधान पीठ में सुनवाई की बात भी कही थी. आज जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्य कांत, एम एम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले में प्राथमिक सुनवाई की और अक्टूबर में विस्तृत सुनवाई की बात कही, संविधान पीठ ने मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग और अल्पसंख्यक आयोग को भी पार्टी बनाया है.


9 याचिकाओं पर होनी है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में कुल 9 याचिकाएं आज सुनवाई के लिए लगी थीं. इनमें समीना बेगम, नफीसा खान, फरजाना, शबनम, जैसी मुस्लिम महिलाओं के अलावा मुस्लिम वुमेंस रेसिस्टेंस कमिटी की नाज़िया इलाही खान की भी याचिका है. इसके अलावा वकील अश्विनी उपाध्याय और हैदराबाद के मोहसिन बिन हुसैन ने भी याचिका दाखिल की हैं,


4 प्रथाओं को चुनौती


इन याचिकाओं में 4 तरह की प्रथाओं को अवैध करार देने की मांग की गई है :-



  1. बहुविवाह- पुरुषों को एक बार में 4 तक शादी करने की इजाज़त

  2. निकाह हलाला- तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने पति से दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी और पुरुष से शादी करनी पड़ती है, शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं. फिर नए पति से तलाक लेने के बाद पहले पति से शादी हो सकती है.

  3. निकाह ए मुताह- शिया मुसलमानों के एक वर्ग में प्रचलित कांट्रेक्ट मैरिज. इसमें एक तय समय के लिए ही शादी होती है. इसके बाद महिला और उसके बच्चों का जीवन-यापन उसके पति की ज़िम्मेदारी नहीं रह जाती है.

  4. निकाह ए मिस्यार- सुन्नी मुसलमानों के एक हिस्से में मान्य कांट्रेक्ट मैरिज. काफी हद तक निकाह ए मुताह से मिलता-जुलता है.


संविधान के खिलाफ बताया


याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 का हवाला दिया गया है. अनुच्छेद 14 और 15 हर नागरिक को समानता का अधिकार देते है. यानी जाति धर्म, भाषा या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता, जबकि, अनुच्छेद 21 हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का हक देता है.


याचिकाकर्ताओं के मुताबिक हलाला और बहुविवाह जैसे प्रावधान मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं. उन्हें संविधान से मिले मौलिक अधिकारों से वंचित करते हैं. इसलिए उन्हें बराबरी और सम्मान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट के सेक्शन 2 को असंवैधानिक करार दे. इसी सेक्शन में इन प्रावधानों का ज़िक्र है.


तलाक-ए-बिद्दत रद्द कर चुका है कोर्ट
22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने एक साथ 3 बार तलाक बोल कर शादी खत्म करने के चलन को असंवैधानिक करार दिया. तलाक-ए-बिद्दत के नाम से पहचानी जाने वाली इस व्यवस्था को सुन्नी मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग मान्यता देता था.इसके तहत पति जब चाहे पत्नी 3 बार तलाक कर उससे रिश्ता खत्म कर सकता था.


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मद्देनज़र याचिकर्ताओं काफी उम्मीदें हैं. उन्हें लगता है कि महिलाओं से भेदभाव करने वाली दूसरी व्यवस्थाओं को भी कोर्ट गैरकानूनी करार देगा.


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