Mahrashtra Cabinet: महाराष्ट्र (Maharashtra) में 30 जून को शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (CM Eknath Shinde) के कैबिनेट का अभी तक विस्तार नहीं हुआ है. मंत्रिमंडल में सिर्फ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ही शामिल हैं. इसे लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं.
यह चर्चा होती रही है कि वजह राजनीतिक है या मंत्रिमंडल के विस्तार में कोई कानूनी अड़चन है? क्या एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चल रही सुनवाई के चलते महाराष्ट्र कैबिनेट (Maharshtra Cabinet) के विस्तार में कोई कानूनी समस्या है? इसका जवाब है, नहीं. हालांकि, फिर भी यह कहा जा रहा है कि सोमवार को मामले में आने वाली सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर मंत्रिमंडल का विस्तार रोका गया है. हम इस पर सिलसिलेवार तरीके से चर्चा करेंगे.
कोर्ट को क्या तय करना है?
पहले यह समझ लेते हैं कि सोमवार यानी 8 अगस्त को आखिर सुप्रीम कोर्ट को क्या तय करना है? दरअसल, उस दिन कोर्ट पूरे विवाद से जुड़े मामलों को संविधान पीठ को भेजने पर फैसला लेगा. महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों की बगावत और उसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से पैदा हुई स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं. इन याचिकाओं में शिंदे कैंप के 16 विधायकों की अयोग्यता, एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के निमंत्रण, सदन में नए स्पीकर के चुनाव की गलत प्रक्रिया जैसे कई मसले उठाए गए हैं.
आदेश का असर
सुप्रीम कोर्ट फिलहाल ऐसा कोई आदेश नहीं देने जा रहा है, जिससे पूरे मामले का निपटारा होता हो. चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच को अभी यही तय करना है कि मामले में उठाए गए अहम संवैधानिक सवालों के मद्देनजर उसे 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा जाए या तीन जजों की बेंच ही सुनवाई जारी रखे. कोर्ट को यह भी तय करना है की सुनवाई की रूपरेखा क्या होगी और क्या उसे किसी तय समय सीमा में निपटाया जाएगा.
मंत्रिमंडल विस्तार पर कोई रोक नहीं
ऐसे में यह साफ है कि 8 अगस्त को कोर्ट जो आदेश देने वाला है, उससे शिंदे सरकार के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं आएगा. राज्य में मंत्रिमंडल का विस्तार संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत एक संवैधानिक प्रक्रिया है. इसमें राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों को नियुक्त करते हैं. इस तरह की प्रक्रिया पर अमूमन न तो कोर्ट की तरफ से कोई रोक लगाई जाती है, न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बार भी ऐसी कोई रोक लगाई है.
कोर्ट के आदेश का इंतजार क्यों?
ऐसे में अगर वाकई सुप्रीम कोर्ट की लंबित सुनवाई के चलते राज्य में पिछले हफ्ते होने जा रहे कैबिनेट विस्तार को टाला गया था, तो उसकी सिर्फ एक ही वजह हो सकती है कि सत्ताधारी गठबंधन सुप्रीम कोर्ट को कोई नकारात्मक संदेश नहीं देना चाहता. वह यह नहीं दिखाना चाहता कि कोर्ट में सुनवाई लंबित रहते कैबिनेट का विस्तार किया गया है.
चीफ जस्टिस ने उठाए थे सवाल
दरअसल, इस मामले को सुनते हुए पिछले शुक्रवार को चीफ जस्टिस रमना ने इस बात पर हल्की नाराजगी जताई थी कि शिंदे कैंप ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अपने 16 विधायकों की अयोग्यता को लेकर डिप्टी स्पीकर की तरफ से की जा रही कार्रवाई पर रोक लगाने का अनुरोध किया. जब यह रोक लग गई तो उसके कुछ दिनों के भीतर ही नई सरकार का गठन कर लिया. विधानसभा में नया स्पीकर भी चुन लिया गया.
हालांकि, यह सब संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही हुआ है और मंत्रिमंडल का विस्तार भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संवैधानिक दायित्वों का हिस्सा है. फिर भी ऐसा लगता है कि एकनाथ शिंदे और भाजपा का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करना चाहता है. उस आदेश में आगे की सुनवाई की रूपरेखा तय हो जाने के बाद कैबिनेट विस्तार का फैसला लिया जाएगा.
इसे भी पढ़ेः-