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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

EWS Reservation: सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण पर SC ने पूरी की सुनवाई, जल्द आएगा फैसला | दलीलों की बड़ी बातें

जनवरी 2019 में केंद्र सरकार ने संसद में 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित कर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया था.

Plea In SC On EWS Reservation: सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई पूरी कर ली है. चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित (Uday Umesh Lalit) की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 7 दिनों तक सभी पक्षों को विस्तार से सुना. 

जनवरी 2019 में केंद्र सरकार ने संसद में 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित करवा कर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था बनाई थी. इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ ने 13 सितंबर से मामले पर विस्तृत सुनवाई शुरू की.  चीफ जस्टिस ललित के अलावा इस संविधान पीठ के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रविंद्र भाट, बेला एम त्रिवेदी और जमशेद बी. पारडीवाला. 

याचिकाकर्ता पक्ष की दलील
5 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपा था.  इस मामले में एनजीओ जनहित अभियान समेत 30 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का रुख किया. 

इन याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए जाने को चुनौती दी गई. याचिकाकर्ता पक्ष ने दलील दी कि आरक्षण का उद्देश्य सदियों तक सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग के उत्थान का था. इसलिए आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. अगर कोई तबका आर्थिक रूप से कमज़ोर है तो उसकी सहायता दूसरे तरीकों से की जानी चाहिए. 

कब आरक्षण देने वाली थी सरकार?
याचिकाकर्ता पक्ष के लिए पेश वकीलों ने यह भी कहा कि सरकार को अगर गरीबी के आधार पर आरक्षण देना था, तो इस 10 प्रतिशत आरक्षण में भी एससी, एसटी और ओबीसी के लिए व्यवस्था बनाई जानी चाहिए थी. वकीलों ने यह तर्क भी रखा कि सरकार ने बिना जरूरी आंकड़े जुटाए आरक्षण का कानून बना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित रखने का फैसला दिया था इस प्रावधान के जरिए उसका भी हनन किया गया.

क्या है सरकार की दलील?

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस आरक्षण का यह कहते हुए बचाव किया :-

  • कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत रखना कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं.  सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. 
  • तमिलनाडु में 68 फीसदी आरक्षण है.  इसे हाई कोर्ट ने मंजूरी दी.  सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक नहीं लगाई. 
  • आरक्षण का कानून बनाने से पहले संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में ज़रूरी संशोधन किए गए थे. 
  • आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था ज़रूरी है. 

जल्द आ सकता है फैसला
चीफ जस्टिस ललित (Uday Umesh Lalit) का कार्यकाल 8 नवंबर तक ही है. नियमों के मुताबिक किसी मामले की सुनवाई पूरी करने वाले जज रिटायर होने से पहले उसका फैसला देकर जाते हैं.  ऐसे में यह तय है कि 8 नवंबर तक EWS आरक्षण की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आ जाएगा.

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