Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक अजन्मे बच्चे की बची जान, जानिए क्या है पूरा मामला
Supreme Court News: यह मामला उस वक्त पेंचीदा हो गया था जब एम्स ने सुप्रीम कोर्ट को बच्चे का गर्भपात नहीं कराने की सलाह दी थी.
SC Judgement For An Unborn Child: सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले काफी चर्चा हो रही है. देश के मुख्य न्यायाधीश ने एक अजन्मे बच्चे की जान बचाने के लिए अपने कक्ष में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ तकरीबन 40 मिनट तक चर्चा की और उसके बाद बच्चे को सुरक्षित जन्म देने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अजन्मे बच्चे के सुरक्षित प्रसव कराने और उसे एक नया परिवार दिलाने का फैसला सुनाया.
दरअसल, 20 साल की युवती ने अनचाहे गर्भ को गिराने की अनुमति मांगी थी. युवती ने कोर्ट को बताया था कि उसे 7 महीने बाद गर्भ ठहरने का पता चला. कोर्ट को यह भी बताया गया कि युवती अविवाहित है और उसके परिवार वाले बच्चे को अपनाने को तैयार नहीं है. इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने एम्स (AIIMS) से सलाह मांगी तो एम्स के डॉक्टरों ने गर्भपात न करने की सलाह दी. एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि गर्भ की अवधि 29 सप्ताह पार कर गई है इसलिए गर्भपात जायज नहीं है.
बच्चे को जन्म के बाद मिलेगा नया परिवार
वहीं, महिला के घर वालों को भी इसकी जानकारी नहीं है इसलिए बैठक में गोपनीयता बरती जा रही है. हालांकि, इसका फैसला ऐसा हुआ जो अजन्मे बच्चे के हित में होगा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एम्स को युवती का सुरक्षित प्रसव कराने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के दखल के चलते जन्म के बाद बच्चे को नया परिवार भी मिलेगा. कोर्ट ने बच्चे के जन्म के बाद उसे एक इच्छुक परिवार को सौंपने की अनुमति दी है. इस परिवार ने युवती की याचिका के बारे में जानने के बाद बच्चे को गोद लेने की इच्छा जताई थी.
कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत सुनाया फैसला
बता दें कि एम्स ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी कि इस स्थिति में अगर सर्जरी की जाती है तो बच्चा गर्भ से जीवित ही बाहर आएगा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का प्रयोग करते हुए एम्स को प्रसव कराने का निर्देश दिया और शिशु को इच्छुक परिवार को सौंपने की अनुमति दी. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने भी माना कि यह केस गर्भपात के उन मामलों की तरह नहीं है, जिनमें अनुमति दी जाती रही है.
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